आज है कालाष्टमी, रात में जरूर करें यह आरती और स्तुति

आप सभी को बता दें कि हर साल आने वाली कालाष्टमी आज है। जी हाँ, पंचांग के मुताबिक हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का दिन मानते हैं उसी के मुताबिक इस वर्ष ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की कालाष्टमी 14 मई यानी की आज मनाई जा रही हैं। ऐसे मे आज हम लेकर आए हैं श्री भैरव जी की आरती और श्री भैरव स्तुति जो आपको आज रात मे जरूर करना चाहिए। आइए जानते हैं.

श्री भैरव जी की आरती सुनो जी भैरव लाडले, कर जोड़ कर विनती करूं कृपा तुम्हारी चाहिए , में ध्यान तुम्हारा ही धरूं

मैं चरण छूता आपके, अर्जी मेरी सुन सुन लीजिए मैं हूँ मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो कीजिए

महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूं सुनो जी भैरव लाडले...

करते सवारी श्वानकी, चारों दिशा में राज्य है जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं | हथियार है जो आपके, उनका क्या वर्णन करूं सुनो जी भैरव लाडले...

माताजी के सामने तुम, नृत्य भी करते हो सदा गा गा के गुण अनुवाद से, उनको रिझाते हो सदा एक सांकली है आपकी तारीफ़ उसकी क्या करूँ सुनो जी भैरव लाडले... बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेहंदीपुर सरनाम है

आते जगत के यात्री बजरंग का स्थान है श्री प्रेतराज सरकारके, मैं शीश चरणों मैं धरूं सुनो जी भैरव लाडले...

निशदिन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश होती रहें सर पर तुम्हारे हाथ रखकर आशीर्वाद देती रहे

कर जोड़ कर विनती करूं अरुशीश चरणों में धरूं सुनो जी भैरव लाड़ले, कर जोड़ कर विनती करूं

  आरती श्री भैरव बाबा की

जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा। जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।

तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक। भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।

वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी। महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।

तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे। चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।

तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी। कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।

पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।। बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।

बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें। कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।

  श्री भैरव स्तुति​- यं यं यं यक्ष रुपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं । सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम् ।। दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं । पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।1।।

रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम् । घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम् ।। कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं । दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।2।।

लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं । धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम् ।। रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम् । नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।3।।

वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम् । खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम् चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम् । मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।4।।

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम् । क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम् ।। हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं । बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।5।।

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