भारतीय सिनेमा में कानन देवी एक ऐसा नाम है जिन्होंने अपने अभिनय से कामयाबी के शिखर को छुआ. वह बांग्ला सिनेमा की पहली कलाकार हैं जिन्हें स्टार का दर्जा हासिल हुआ. कानन देवी का जन्म पश्चिम बंगाल के हावड़ा में आज ही के दिन यानी 22 अप्रैल को 1916 में एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था. यही थी क्वो जिन्होंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा था. इतना ही नहीं, उन्हें भारतीय सिनेमा में एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने न केवल फिल्म निर्माण बल्कि एक्टिंग और गायिकी से भी दर्शकों के दिलों में खास पहचान बनाई थी. यह भारत की प्रसिद्ध अभिनेत्री, गायिका और फ़िल्म निर्माता थीं. 'कानन बाला' जिन्‍हें आज हम काननदेवी के नाम से जानते हैं. बता दें, वह पहली बांग्ला कलाकार थीं, जिन्हें भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए 1976 में 'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था. उन्‍हें विश्‍वभारती ने ऑनरेरी डिग्री से सम्‍मानित किया था और 1968 वे नागरिक सम्‍मान पदमश्री से भी सम्‍मानित की गयी थीं. कानन के दत्तक पिता रमेशचन्द्र दास की जब मृत्यु हुई उस समय वह महज 10 साल की थीं. परिवार की आर्थिक तंगी के चलते उन्हें 10 साल की उम्र से ही काम करना पड़ा. एक पारिवारिक मित्र की मदद से उन्हें 'ज्योति स्टूडियो' की फिल्म 'जयदेव' में काम करने का मौका मिला. 1941 में कानन देवी ने न्यू थियेटर छोड़ दिया और वे स्वतंत्र रूप से काम करने लगीं. 1942 में आयी फ़िल्म 'जवाब' कानन देवी के हिंदी फिल्‍मों के करियर में सबसे हिट फ़िल्म साबित हुई. इसी फ़िल्म में उन पर फ़िल्माया गया गीत- "दुनिया है तूफान मेल", उन दिनों का टॉप सांग बना. इसके बाद कानन देवी की 'हॉस्पिटल', 'वनफूल' और 'राजलक्ष्मी' जैसी फ़िल्में भी रिलीज हुई, और सुपरहिट रहीं. 1948 की फ़िल्म 'चंद्रशेखर' अभिनेत्री के रूप में कानन देवी की अंतिम हिन्दी फ़िल्म थी. फ़िल्म में उनके नायक की भूमिका में अशोक कुमार थे. इतना ही नहीं, उन्‍होंने 'श्रीमती पिक्चर्स' के नाम से अपना प्रोडेक्‍शन हाउस शुरू किया. अपने बैनर तले उनके प्रोडक्‍शन हाउस ने वामुनेर में (1948), अन्नया (1949), मेजो दीदी (1950), दर्पचूर्ण (1952), नव विद्यान (1954), आशा (1956), आधारे आलो (1957), राजलक्ष्मी ओ श्रीकांता (1958), इंद्रनाथ, श्रीकांता औ अनदादीदी (1959) और अभया ओ श्रीकांता (1965) जैसी कई फिल्‍मों का र्निमाण किया. 1940 में कानन देवी ने ब्रह्म समाज के मशहूर शिक्षाविद् हरम्बा चंद्र मैत्रा के बेटे अशोक मैत्रा से शादी की, पर उस समय का कंजरवेटिव समाज इस शादी के सख्‍त खिलाफ था. समाज के अनुसार महिलाओं का फिल्‍मों में काम करना गलत है और शादी के बाद कानन को एक्‍टिंग छोड़नी होगी. उस समय के मशहूर कवि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कानन और अशोक की शादी पर एक सुंदर गिफ्ट और अपना आर्शिवाद दिया तो ब्रह्म समाज ने उनकी भी बहुत आलोचना की. 50 साल के होने जा रहे हैं मनोज वाजपेयी, इस खास अंदाज में मनाएंगे जश्न B'Day : राशन कूपन से खरीदा था महारानी एलिजाबेथ ने वेडिंग गाउन, जानें उनके बारे में खास बातें माँ के बर्थडे कुछ ऐसा है कपूर सिस्टर्स का प्लान