नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में इस समय जम्मू कश्मीर से हटाए गए अनुच्छेद 370 पर लगातार सुनवाई हो रही है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्सिट (Brexit) जैसे जनमत संग्रह का सवाल ही नहीं उठता है। बता दें कि, Brexit उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जिसके द्वारा यूनाइटेड किंगडम (Britain UK) 2016 में आयोजित जनमत संग्रह में 52% मतदाताओं के समर्थन के साथ यूरोपीय संघ से हट गया था। ब्रिटेन ने आधिकारिक तौर पर जनवरी 2020 में संगठन छोड़ दिया था। बता दें कि, मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने और 2019 में पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के मोदी सरकार के फैसलों को चुनौती देने वाली 20 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व की कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके कपिल सिब्बल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना ब्रेक्सिट जैसा एक राजनीतिक कृत्य था। सिब्बल ने तर्क देते हुए कहा कि, "ब्रेक्सिट में, जनमत संग्रह की मांग करने वाला कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं था। लेकिन, जब आप किसी ऐसे रिश्ते को तोड़ना चाहते हैं, जो पहले ही जुड़ चुका है, तो आपको अंततः लोगों की राय लेनी चाहिए, क्योंकि इस निर्णय के केंद्र में लोग हैं, न कि भारत संघ।" हालाँकि, CJI चंद्रचूड़ ने सिब्बल के तर्कों को नकारते हुए कहा कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहाँ अपने लोगों की इच्छा केवल स्थापित संस्थानों के माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सकती है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि, "इसलिए, आप ब्रेक्सिट जैसे किसी भी जनमत संग्रह जैसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते।" मामले की सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता छीनने का केंद्र का फैसला असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि, ''आप मध्य प्रदेश या बिहार को दो केंद्र शासित प्रदेशों में नहीं बांट सकते। यह लोकतंत्र का एक प्रतिनिधि स्वरूप है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवाज कहां हैं? प्रतिनिधि लोकतंत्र की आवाज़ कहाँ है?' सिब्बल ने कहा कि, 'पांच वर्ष बीत गए, क्या आपके पास [केंद्र में] किसी प्रकार का प्रतिनिधि लोकतंत्र है? इस तरह पूरे भारत को केंद्र शासित प्रदेश में बदला जा सकता है।' मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी या स्थायी प्रावधान था, यह अप्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि, ''जिस तरह से यह किया गया वह संविधान के साथ धोखाधड़ी है। यह राजनीति से प्रेरित कृत्य है। कार्यकारी आदेश राजनीतिक कार्य हैं, संवैधानिक कार्य नहीं। फिलहाल स्थायी या अस्थायी यह मुद्दा नहीं है।” आपके पर्सनल डेटा की सुरक्षा के लिए सरकार ने उठाया बड़ा कदम, संसद में पारित हुआ डेटा संरक्षण विधेयक 'आज भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यस्था..', लोकसभा में निर्मला सीतारमण ने रखे आंकड़े कार पर 'प्रशासन' लिखकर कर रहे थे शराब की तस्करी, ऐसे हुआ भंडाफोड़