पिछली सदी में भारत को ओलिंपिक में हॉकी के अतिरिक्त किसी और खेल में बड़ी कामयाबी नहीं प्राप्त हुई थी। हालांकि 21वीं सदी का आरम्भ ही ऐतिहासिक मेडल से हुआ था। भारत को प्रथम महिला ओलिंपिक मेडलिस्ट मिली। यह कारनामा किया था वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने। आंद्र प्रदेश के छोटे से गांव से आने वाली यह प्लेयर 2000 में हुए इन खेलों में भारत की एकमात्र मेडलिस्ट थीं। मल्लेश्वरी के इस मेडल ने भारत में महिलाओं के खेल में करियर बनाने के मार्ग को खोला तथा यकीन दिलाया कि अवसर दिया जाना पर भारत की महिलाएं किसी भी खेल में कामयाबी हासिल कर सकती हैं। आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव वूसावानिपेटा पैदा होने वाली मल्लेश्वरी के परिवार वालों ने कभी नहीं सोचा था कि यह लड़की एक दिन उनका ही नहीं बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन करेगी। सिर्फ 12 वर्ष की आयु में कोच नल्लामशेट्टी अप्पन्ना के संरक्षण में मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में प्रशिक्षण आरम्भ किया। कर्णम मल्लेश्वरी की प्रतिभा को ‘अर्जुन पुरस्कार’ विजेता मुख्य राष्ट्रीय कोच श्यामलाल सालवान ने पहचाना, जब वह अपनी बड़ी बहन के साथ 1990 में बंगलौर कैम्प में गई थीं। सिर्फ यहीं से उनका खेल प्रेम जाग उठा तथा वह पूरी प्रकार खेल में रम गईं उनका संघर्ष रंग लाया तथा सिर्फ एक साल में भारतीय टीम की दावेदारी में आ गईं। 1993 में मल्लेश्वरी ने विश्व चैम्पियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया तथा उसके पश्चात् 1994 और 1995 में 54 किग्रा डिवीजन में विश्व खिताब की एक श्रृंखला के साथ, 1996 में फिर से तीसरे स्थान पर रहीं। उन्होंने 1994 तथा 1998 के एशियाई खेलों में दो सिल्वर भी प्राप्त किए, तथा 1999 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।