कर्नाटक में ये भी कर सकते है राज्यपाल !

बेंगलुरु : कर्नाटक विधानसभा के नतीजे आ जाने के बाद आंकड़ों का गणित ऐसे उलझा है कि सारे देश की नज़रे अब राजभवन पर  आ टिकी है.  एक चाल से ही तस्वीर बदल सकती है लेकिन तस्वीर बदलने का सबसे बड़ा अधिकार राज्यपाल के पास है. कर्नाटक में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल सेक्युलर के समर्थन से सरकार बनाने की जुगत में लगी कांग्रेस में से किसे सरकार बनाने के लिए न्योता देना है, इसका फैसला राज्यपाल वजुभाई आर वाला करेंगे. एक्सपर्ट्स की मानें तो अब तीन संभावनाएं बनती हैं- 

 राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि जिस तरह गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाने की पेशकश की थी, बीजेपी को भी वही तर्क सामने रखना चाहिए. दोनों राज्यों में कांग्रेस को ज्यादा वोट मिलने के बावजूद बीजेपी ने क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.

पूर्व अटर्नी जनरल सोली सोराबजी का मानना है कि पहले सबसे बड़ी पार्टी को न्योता दिया जाना चाहिए. सदन के फ्लोर पर वह 7 से 10 दिन में अपना बहुमत साबित करे. अगर वह पार्टी बहुमत साबित नहीं कर सकी तब अगली सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को न्योता दिया जाना चाहिए. अगर वह भी बहुमत साबित नहीं कर सके, ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए.

कई तरह के तर्कों से हटकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार बनाने का न्योता देने का अधिकार राज्यपाल को उनके विवेक के आधार पर दिया है. लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप का कहना है कि राज्यपाल को किसी भी पार्टी, चुनाव से पहले या बाद में बने गठबंधन को न्योता देना होता है, अगर वह इस बात से संतुष्ट हैं तो जिसे वह न्योता दे रहे हैं, वे सदन में बहुमत साबित कर सकेंगे.

 

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