328 कब्रिस्तानों के लिए 2750 एकड़ जमीन दे रही कर्नाटक सरकार..! वक्फ बोर्ड रहेगा मालिक

बैंगलोर: कर्नाटक में हाल ही में एक नया विवाद उभरा है, जो भूमि आवंटन से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया जा रहा है, क्योंकि उसने 2,750 एकड़ सरकारी और राजस्व भूमि को इस्लामिक समुदाय के कब्रिस्तानों के लिए आवंटित करने का निर्णय लिया है। यह कदम विशेष रूप से वक्फ संपत्ति को लेकर हो रहे विवादों के बीच उठाया गया है, जिससे भूमि आवंटन में धार्मिक पक्षपात के आरोप लग रहे हैं। 

सरकार ने इस भूमि का आवंटन बेंगलुरु, रायचूर, कालाबुरागी, हसन, दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जैसे जिलों में 328 कब्रिस्तानों के लिए किया है। यह भूमि वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में रखी जाएगी, और इन कब्रिस्तानों को सरकार की पहल के तहत विस्तार देने का निर्णय लिया गया है। इस योजना की शुरुआत राज्य स्तरीय वक्फ संपत्ति टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद हुई थी, जिसमें सरकारी या निजी भूमि की पहचान कर उसे कब्रिस्तान के रूप में उपयोग करने का सुझाव दिया गया था। अप्रैल में तत्कालीन उप मुख्य सचिव डॉ. शालिनी रजनीश और प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार कटारिया द्वारा जारी आदेशों के बाद इस फैसले को लागू किया गया था। 

यह कदम उन हिंदू मंदिरों की भूमि के खिलाफ उठाया गया है, जिन्हें नियमितीकरण की कई बार मांग के बावजूद अभी तक औपचारिक अधिकार नहीं मिला है। कर्नाटक में 34,223 से अधिक सी-ग्रेड मंदिर सरकारी भूमि पर स्थित हैं, लेकिन इन मंदिरों के पास किसी भी प्रकार का स्वामित्व अधिकार नहीं है। 2013 से धार्मिक परिषद जैसे संगठनों ने सरकार से मंदिर की भूमि के अधिकार देने की अपील की है। इसके बावजूद सरकार ने इस भूमि पर कब्रिस्तान बनाने की मंजूरी दे दी, जिससे विपक्षी दलों और हिंदू समर्थक संगठनों ने आलोचना की है। उनका कहना है कि सरकार ने मंदिरों की भूमि के नियमितीकरण को नजरअंदाज करते हुए धार्मिक पक्षपाती दृष्टिकोण अपनाया है।

विपक्षी दलों और भाजपा नेताओं ने कर्नाटक सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सत्तारूढ़ दल ने अल्पसंख्यक समुदाय के वोट के लिए हिंदू मंदिरों और उनके अधिकारों की अनदेखी की है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जबकि कब्रिस्तानों के लिए भूमि आवंटित की जा रही है, लाखों हिंदू भक्तों की सेवा करने वाले मंदिरों को कानूनी पचड़ों में छोड़ दिया गया है। इस विवाद ने कर्नाटक की राजनीति को और गरमा दिया है, जहां भूमि स्वामित्व और वक्फ संपत्ति को लेकर कई मुद्दे पहले से ही सामने आ चुके हैं। हिंदू समर्थक संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है, और विपक्षी नेता आगामी विधानसभा सत्र में इस फैसले को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं।

कर्नाटक सरकार इस फैसले का बचाव करते हुए कह रही है कि यह कदम कुछ समुदायों द्वारा भूमि की कमी को दूर करने के लिए उठाया गया है। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि इस तरह का चयनात्मक आवंटन धार्मिक समुदायों के बीच मतभेद को और बढ़ा सकता है और इससे सार्वजनिक विश्वास में कमी आ सकती है। राज्य के नेताओं का कहना है कि यह कदम सिर्फ कुछ समुदायों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि समग्र रूप से समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।

वक्फ संपत्ति पर यह विवाद और बढ़ने की संभावना है, खासकर बीदर और अन्य जिलों में, जहां वक्फ बोर्ड ने बड़ी मात्रा में भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित किया है। बीदर में वक्फ बोर्ड ने 13,295 एकड़ भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया है, जिसके बाद स्थानीय किसानों और अन्य निवासियों में आक्रोश फैल गया है। किसानों का कहना है कि उनकी ज़मीन पर उनका अधिकार छीन लिया गया है और यह उनका अधिकार नहीं है। खासतौर पर चटनल्ली और धर्मपुरा जैसे गांवों के लोग प्रभावित हुए हैं, जहां उनकी खेती की भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है।

बीदर की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यहां के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल भी इस विवाद के घेरे में आ गए हैं। स्थानीय लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि कैसे सरकार और वक्फ बोर्ड बिना किसी सार्वजनिक परामर्श के ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों को वक्फ संपत्ति में शामिल कर सकता है। इस विवाद ने यह भी साबित कर दिया है कि कर्नाटक में वक्फ संपत्ति और भूमि के अधिकारों को लेकर स्थिति जटिल हो गई है।

वक्फ संपत्ति पर बढ़ते विवादों का एक अन्य उदाहरण बेलगावी जिले का अनंतपुर गांव है, जहां मुस्लिम और हिंदू समुदाय के लोग वक्फ बोर्ड के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां 60 से अधिक किसानों की भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया है, जिससे स्थानीय लोग परेशान हैं। उनका कहना है कि बिना उनकी सहमति के उनकी भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे उन्हें वित्तीय और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 

विरोध प्रदर्शन अब और तीव्र हो गए हैं, और प्रदर्शनकारी सरकार से इस मुद्दे को शीघ्र हल करने की मांग कर रहे हैं। वे चेतावनी दे रहे हैं कि अगर उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो वे अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन शुरू कर सकते हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि वक्फ बोर्ड द्वारा जारी किए गए नोटिस वापस लिए जाएंगे, लेकिन प्रदर्शनकारी इससे संतुष्ट नहीं हैं और उनका कहना है कि पहले ही उन्हें काफी नुकसान हो चुका है। 

वक्फ संपत्ति के इस विवाद ने राज्यभर में राजनीतिक बहस को जन्म दिया है और यह संभावना है कि इससे कर्नाटक में और भी अधिक विभाजन हो सकता है। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों के बीच टकराव की आशंका जताई जा रही है, जिससे स्थिति और जटिल हो सकती है। कर्नाटक में वक्फ संपत्ति के विवाद को लेकर बढ़ती हुई असहमति और विरोध प्रदर्शन यह दर्शाते हैं कि यह मुद्दा सिर्फ स्थानीय समस्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे राज्य की राजनीति और समाज पर भी गहरा असर पड़ सकता है।

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