ईश्वर की लीला, केवल वही जानता है, मानव अपने विवेक से प्रभु की लीलाओं को सम्पूर्णता से नहीं समझ सकता। इसका एक सबसे बड़ा प्रमाण है, भारत का केदारनाथ मंदिर, जो कई आपदाएं झेलकर भी गर्व से सिर उठाए खड़ा हुआ है। दरअसल, 13वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी के बीच हिमालय क्षेत्र में आए अल्पकालिक हिमयुग में बाबा केदारनाथ मन्दिर चार सौ सालों के लंबे अंतराल तक बर्फ में ही दबा रहा था। हिमयुग खत्म होने पर विशेषज्ञ जब मन्दिर का निरीक्षण करने पहुँचे, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि मन्दिर पूर्णतया क्षति रहित अपने भव्य स्वरूप में स्वस्थान पर सुरक्षित खड़ा हुआ था। आज भी केदारनाथ मन्दिर में उस हिमशैल के घर्षण के प्रमाण नज़र आते हैं। हिमशैल सतत चलायमान होते हैं। न सिर्फ वे चलायमान होते हैं, बल्कि उनके चलने से अत्यधिक भार की वजह से भीषण दबाव भी पैदा होता है। हिमशैल के संयुक्त होकर अनेक चट्टान भी चलते रहते हैं जो मार्ग में आई सभी वस्तुओं से रगड़ खाते हुए चलता है। अब जरा सोचिए कि जब मन्दिर 400 वर्षों तक बर्फ में पूरी तरह ढँका था, तो उस पर कितना दबाव और घर्षण पड़ा होगा ? आज भी मन्दिर के भीत पर उन घर्षणों के चिह्न मौजूद हैं। ऐसा कहा जाता है कि बाबा केदारनाथ मन्दिर के पार्श्व में पाण्डवों ने एक मन्दिर बनवाया था। लेकिन समय के झंझावातों को नहीं सह पाने की वजह से वह मन्दिर नष्ट हो गया। बाबा केदारनाथ मन्दिर पाषाण चट्टानों को एक दूसरे के गूँथ कर (interloking system) निर्मित किया गया है। इस मन्दिर की दृढ़ता का यही सबसे अहम कारण है। मन्दिर की दीवारें बारह फीट मोटी पाषाण चट्टानों से बनाई गई हैं। मन्दिर छः फीट ऊँची समतल जमीन पर मौजूद है। हैरानी की बात तो ये है कि, इसकी छत को एक ही अखण्ड चट्टान से बनाया गया है। वक़्त के इतने थपेड़ों को झेलकर, 400 वर्षों तक हिम में दबा रहकर भी इस प्रकार सगर्व खड़ा रहने वाला कोई अन्य मन्दिर नहीं है। जारी हुए पेट्रोल-डीजल के दाम, जानिए आज का भाव राष्ट्रीय कुश्ती में वापसी पर गीता फोगाट ने जीता रजत इज़राइल सरकार ने नए कोविड वैरिएंट से निपटने के लिए राष्ट्रीय ड्रिल आयोजित की