नई दिल्ली: आज सोमवार (5 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (MCD) में सदस्यों के नामांकन के संबंध में दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के अधिकार को स्पष्ट किया। कोर्ट ने पुष्टि की है कि एलजी के पास दिल्ली सरकार की सहमति या सलाह के बिना इन सदस्यों को नामित करने की शक्ति है। यह निर्णय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासनिक ढांचे के भीतर अलग-अलग भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को रेखांकित करता है, जो विशिष्ट वैधानिक कार्यों में एलजी की स्वायत्तता को मजबूत करता है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय दिल्ली नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों पर आधारित है। कोर्ट के अनुसार, यह अधिनियम एलजी को एक वैधानिक शक्ति प्रदान करता है, जो कार्यकारी शक्तियों से स्वाभाविक रूप से अलग है, जिसके लिए आमतौर पर निर्वाचित सरकार से परामर्श या सलाह का पालन करना आवश्यक होता है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि नामांकन शक्ति एक विधायी क़ानून से प्राप्त होती है, इसलिए एलजी को इस अधिकार का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने के लिए बाध्य किया जाता है, जो अधिनियम द्वारा प्रदान किए गए विधायी ढांचे और जनादेश का सख्ती से पालन करता है। यह निर्णय दिल्ली के शासन के भीतर शक्तियों के महत्वपूर्ण पृथक्करण को रेखांकित करता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार की अपनी परिभाषित भूमिकाएँ और कार्यकारी शक्तियाँ हैं, लेकिन कुछ वैधानिक शक्तियाँ, जैसे कि एमसीडी में नामांकन, विशेष रूप से एलजी के पास हैं। यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि इस संबंध में एलजी के कार्य राजनीतिक प्रभाव से अछूते हैं और दिल्ली नगर निगम अधिनियम द्वारा निर्धारित कानूनी प्रावधानों के अनुसार किए जाते हैं, जिससे केंद्र शासित प्रदेश की प्रशासनिक प्रणाली के भीतर शक्तियों का स्पष्ट सीमांकन बना रहता है। 'यदि आपके घर-गाँव पर दावा ठोंक दिया, तो कोर्ट भी आपकी नहीं सुनेगी..', इस 'काले कानून' के बारे में जानता ही नहीं आधा हिंदुस्तान ! 10 महीने पहले गायब हुई थी लड़की, अब वीडियो बनाकर मां-बाप को दी ये धमकी सागर में दीवार गिरने से हुई 9 बच्चों की मौत पर पीएम-राष्ट्रपति ने जताया शोक, किया मुआवज़े का ऐलान