नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भले अभी न हुआ हो, लेकिन सियासी सरगर्मियां चरम पर हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) ने जहां अपनी तैयारियों को धार देते हुए सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं, वहीं पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अब नए सियासी समीकरण साधने में जुट गए हैं। इसी सिलसिले में सोमवार को दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में AAP की तरफ से *‘महिला अदालत’* कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जहां केजरीवाल के साथ समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव की मौजूदगी ने बड़ा राजनीतिक संदेश दे दिया। अखिलेश यादव ने कार्यक्रम में मंच साझा करते हुए न केवल केजरीवाल की सरकार के कामों की तारीफ की, बल्कि यह ऐलान भी कर दिया कि सपा पूरी तरह से AAP के साथ खड़ी है। उन्होंने कहा, “दिल्ली जितनी आपकी है, जितना काम AAP सरकार ने किया है, उतना हम भी महसूस करते हैं। आपको फिर से काम करने का मौका मिलना चाहिए।” इस बयान के साथ अखिलेश ने न सिर्फ केजरीवाल का हौसला बढ़ाया, बल्कि कांग्रेस के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर दीं। उल्लेखनीय है कि, दिल्ली में AAP और कांग्रेस के बीच पहले से ही कोई सियासी तालमेल नहीं है। अरविंद केजरीवाल पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ किसी तरह का गठबंधन नहीं करेगी। अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव का AAP के साथ कदमताल करना कांग्रेस के लिए नई चुनौती बन गया है। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘इंडिया गठबंधन’ में सपा और AAP भी शामिल थे। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद से ही विपक्षी पार्टियों के बीच आपसी दूरियां बढ़ने लगीं। पहले केजरीवाल ने कांग्रेस से किनारा किया और अब अखिलेश का AAP के साथ खुलकर आना इस बात का संकेत है कि कांग्रेस धीरे-धीरे गठबंधन में अलग-थलग पड़ती जा रही है। संसद में भी अडानी मुद्दे पर कांग्रेस अकेले ही शोर करती नज़र आती है, उसके साथी दल कन्नी काट लेते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से सपा भी कांग्रेस से थोड़ी छिटकती हुई दिखाई देती है और अखिलेश के बयानों में इसकी झलक देखने को मिल जाती है। अखिलेश यादव ने महिला अदालत कार्यक्रम में भी इसका संकेत दिया, जब उन्होंने AAP के शिक्षा और स्वास्थ्य मॉडल की तारीफ कर न केवल केजरीवाल की सियासी ताकत को मजबूती दी, बल्कि यह भी दिखाया कि उनके पास कांग्रेस के अलावा दूसरे विकल्प मौजूद हैं। इससे पहले हरियाणा में सपा ने कांग्रेस को वॉकओवर दिया था, अब दिल्ली में AAP को समर्थन देकर अखिलेश ने एक और बड़ा राजनीतिक संदेश दे दिया है। दिल्ली में कांग्रेस पहले से ही कमजोर स्थिति में है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए नई चुनौती यह है कि AAP के साथ अखिलेश जैसे नेता भी खुलकर खड़े हैं। इससे AAP यह संदेश देने में कामयाब हो रही है कि विपक्ष का बड़ा हिस्सा बीजेपी के खिलाफ उनके साथ है। वहीं, सपा और AAP के बढ़ते रिश्तों का असर सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा। उत्तर प्रदेश में जहां सपा की पकड़ मजबूत है, वहां AAP को फायदा मिल सकता है। इसी तरह, दिल्ली में अखिलेश यादव की मौजूदगी से सपा को भी अपना आधार मजबूत करने का मौका मिलेगा। इस पूरे सियासी घटनाक्रम के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या विपक्षी दलों की इस लड़ाई में बीजेपी फायदा उठाने में कामयाब हो जाएगी? बीजेपी पहले ही दिल्ली की राजनीति में AAP को टक्कर देने की पूरी तैयारी कर चुकी है। कांग्रेस, AAP और सपा के बीच बढ़ती दूरियों का फायदा उठाकर बीजेपी एक बार फिर खुद को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश कर सकती है। इंडिया गठबंधन के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस की स्थिति पहले से ही कमजोर मानी जा रही है। राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर ममता बनर्जी, लालू यादव और अखिलेश यादव जैसे बड़े नेता पहले ही सवाल उठा चुके हैं। ऐसे में अखिलेश और केजरीवाल की बढ़ती नजदीकियां राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकती हैं। अगर सपा, TMC और AAP जैसे दल मिलकर नया फॉर्मूला तैयार करते हैं, तो कांग्रेस के लिए गठबंधन में अपनी जगह बनाए रखना और भी मुश्किल हो जाएगा। दिल्ली चुनाव से पहले अखिलेश यादव और केजरीवाल की सियासी केमिस्ट्री ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं होगी। सवाल यह है कि क्या विपक्षी दलों के आपसी मतभेद बीजेपी के लिए गेमचेंजर साबित होंगे? क्या कांग्रेस की कमजोर स्थिति से AAP और सपा को फायदा मिलेगा या बीजेपी इस सियासी जंग में बाजी मार लेगी? कुछ ही महीनों में हमें इन तमाम सवालों के जवाब दिल्ली के चुनावी नतीजों के साथ मिल जाएंगे। क्या ताले में ही बंद रहेंगे काशी के 'सिद्धिश्वर महादेव'?, मकान मालिक ने पूजा-पाठ पर लगाई रोक कहने को होमियोपैथी डॉक्टर, काम- आतंकियों को विस्फोटक पहुंचाना..! सईद इस्माइल दोषी करार MP में अपनी ही सरकार पर भड़के पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह, जानिए क्यों?