कल यानी 1 जून 2018 से मध्यप्रदेश के हैरान, परेशान किसान एक बार फिर सड़कों पर उतरने वाले है. इससे पहले भारी मात्रा में महाराष्ट्र के किसानों ने विधानसभा को घेरने के लिए लाखों की संख्या में पैदल मार्च निकाला था. प्रदेश के किसानों के पास आंदोलन करने के अलावा अब कोई चारा बचा नहीं है. आज से साल भर पहले 6 जून को मंदसौर में किसानों का आंदोलन था, जिसमें हुई हिंसा में 6 किसानों को गोलियां का सामना करना पड़ा था और वो वहीं शहीद हो गए थे, उन्हीं की याद में एक बार फिर से यह किसान सड़कों पर उतर रहा है. देश भर में किसानों की हालत का अंदाजा शायद ही कोई सरकार लगा पाए कि किन हालातों में वो हमें खाने के लिए अन्न दे पाते है, लेकिन अफ़सोस प्रदेश की शिवराज सरकार ने किसानों के लिए जो वादें किए थे उनका जमीनी स्तर पर कोई असर देखने को नहीं मिलता. प्रदेश की सरकार इन मामलों में खुद को किसानों का हितेषी बताते आई लेकिन सोचने वाली बात सिर्फ एक ही है कि अगर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की योजनाओं का लाभ किसानों को मिलता तो किसान कोई पागल नहीं है जो कभी फांसी या कभी ज़हर को अपनी मेहबूबा मान कर अपना लेता है, आखिर कुछ तो दर्द होगा इन किसानों को तभी ये आत्महत्या करने को मजबूर होता है, इनका दर्द हर कोई जानता और जो इनके दर्द को सहलकार कर ठीक करने का वादा करता है अंत में वहीं इनकी पीठ में छुरा घोंपता है. ये किसान सिर्फ मेरे देश और मेरे राज्य का ही किसान है जो आये दिन ज़हर पीने के लिए मजबूर रहता है. समझ से परे है कुछ बात, जब सरकार किसानों के हक़ की बात करती है और कहती है कि वो ही किसानों के हमदर्द है तो ऐसी कौन सी बातें है जिसके कारण मध्यप्रदेश में 1761 किसान बीते पांच महीनों में आत्महत्या करने को मजबूर हुए है. क्या कभी सरकारों को इसकी भनक नहीं लगी. अफ़सोस मेरे देश की सरकार सिर्फ बातें बनाना जानती है, वरना गरीबी में जीने वाला किसान देश का सोना उगाता है, जिसकी कीमत उसे नहीं मिलती और कीमत के इंतजार में कई दिनों तक खड़े रहते हुए कभी-कभी भरी धुप और गर्मी में वो किसान मर भी जाता है लेकिन आह नहीं करता.