मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को महादेव के रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी. ये भगवान महादेव के रौद्र रूप हैं. इनका सिर्फ बटुक भैरव अवतार ही सौम्य माना जाता है. प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है, उस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है. जो लोग काल भैरव जयंती के दिन व्रत रखते हैं तथा विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उनको रोग, दोष, अकाल मृत्यु के भय, तंत्र-मंत्र की बाधा से मुक्ति प्राप्त होती है. वही इस वर्ष 05 दिसंबर को काल भैरव जयंती है। आइए आपको बताते हैं भगवान काल भैरव की पौराणिक कथा:- कालाष्टमी पौराणिक कथा- ऐसी मान्यता है कि शिव शंकर के क्रोध से ही भैरव देव का जन्म हुआ था। एक पौराणिक कथा के मुताबिक, 'एक समय की बात है जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों देवों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि उनमें से सबसे पूज्य कौन है? उनके इस विवाद का कोई निष्कर्ष निकले, ऐसा सोचकर इस बहस के निवारण के लिए उन्होंने स्वर्ग लोक के देवताओं को बुला लिया और उनसे ही इस बात का फ़ैसला करने को कहा। इसी बीच महादेव और भगवान ब्रह्मा में कहासुनी हो गई। इसी बहस में शिव जी को इस कदर गुस्सा आ गया कि उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। माना जाता है कि उसी रौद्र रूप से ही भैरव देव का जन्म हुआ था। अपने इसी रौद्र रूप, भैरव देव के रूप में महादेव ने ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक सर को काट दिया तथा तभी से ब्रह्मा जी के केवल चार ही सिर हैं।' काल भैरव जयंती आरती- जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा। जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।। तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक। भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।। वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी। महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।। तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे। चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।। तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी। कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।। पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।। बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।। बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें। कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।। काल भैरव जयंती कल, जानिए शुभ मुहूर्त कब है मार्गशीर्ष माह की पहली एकादशी? जानिए शुभ मुहूर्त और पूजन विधि जानिए मार्गशीर्ष माह में क्या करें और क्या न करें?