जानिए कैसे आयी गंगा स्वर्ग से धरती पर

हमारे धर्मशास्त्रों में गंगा नदी को देव नदी की उपाधि दी गयी है. शास्त्रों में बताया गया है की पहले गंगा नदी सिर्फ स्वर्ग में ही बहती थी. महाराज भगीरथ गंगा नदी को धरती पर लेकर आये थे.गंगा नदी को धरती पर प्रवाहित करने के लिए महाराज भगीरथ ने कठोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या से से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु के चरण से निकलने वाली गंगा को अपने सिर पर धारण करके पृथ्वी पर उतारने का वरदान दिया. 

भागीरथ एक पराक्रमी राजा थे. भगीरथ महाराज ने अपने पूर्वजों को पितृ दोष से मुक्ति दिलाने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी थी क्योकि गंगा ही एक ऐसी नदी है जिनके स्पर्श मात्र से सभी पितृ दोषो से मुक्ति मिल जाती है. गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी. माँ गंगा उनकी तपस्या से बहुत प्रसन्न हुईं पर उन्होंने महाराज भगीरथ से कहा की उनका वेग इतना ज़्यादा है की अगर वे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगीं तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी.    गंगा नदी को इस बात का बहुत घमंड था की कोई भी उनके वेग को सहन नहीं कर सकता. तब महाराज भगीरथ ने शिव जी की तपस्या आरम्भ की. शिव ने प्रसन्न होकर भागीरथ से वर मांगने को कहा. भागीरथ ने अपना सब मनोरथ उनसे कह दिया. तब शिवजी ने उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया.  

गंगा जैसे ही स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगीं गंगा का गर्व दूर करने के लिए शिव ने उन्हें जटाओं में कैद कर लिया. वह छटपटाने लगी और शिव से माफी मांगी. तब शिव ने उसे जटा से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जहां से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं.

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