भारत देश वैसे तो त्यौहार का देश है यहाँ हर दिन तरह तरह के त्यौहार मनाए जाते है जिनमे से होली भी एक बड़ा महत्वपूर्ण त्यौहार है वैसे तो होली की शुरुआत तो बसंत पंचमी से हो जाती है. पर इसे हर्षोल्लास के साथ फाल्गुन महीने में पूर्णमासी के दिन मनाया जाता है इस दिन लोग अपने गिले शिकवे दूर करते है. अपने से बड़े को अबीर और गुलाल लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है. होलिका दहन के लिये लगभग एक महीने पहले से इसकी तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं. उपले, कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है. भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. लेकिन इन सब के बीच दिलचस्प बात जानना भी जरुरी है कि होली पर जब होलिका का दहन होता है. तो यहाँ पर रंग,अबीर और गुलाल कहाँ से आए और होली की पहचान बने. यह कहानी भगवान कृष्ण के समय की है, माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का यह तरीका लोकप्रिय हुआ. वे मथुरा और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे. आज भी वृंदावन मथुरा जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती है". रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है. पहले दिन होलिका दहन दूसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती हैं. होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं. प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं. ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है. इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार,राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं. राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतिक, लट्ठमार होली Holi 2018 : ये है होलिका दहन का मुहूर्त इन जगहों पर खेली जाती है बिना रंगो वाली शानदार होली