जानिए कर्ण और पितृ पक्ष की कहानी?

पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसमें लोग अपने पितरों को याद करके तर्पण और पिंडदान करते हैं। यह पर्व 16 दिनों तक चलता है, और इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हुई है, जो 2 अक्टूबर तक चलेगा। पितृ पक्ष के बारे में कई धार्मिक कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन एक कहानी महाभारत काल से भी जुड़ी है, जिसका संबंध कर्ण से है।

कर्ण और पितृ पक्ष की कहानी

महाभारत में कर्ण का चरित्र बहुत महत्वपूर्ण था। वह पांडवों का भाई होते हुए भी कौरवों की तरफ से लड़ा था। कर्ण को उनकी दानवीरता के लिए जाना जाता है, और उन्हें 'दानवीर कर्ण' के नाम से पुकारा जाता है। महाभारत के युद्ध में जब कर्ण का वध हुआ और उनकी आत्मा स्वर्गलोक पहुंची, तब उन्हें भूख लगी। परंतु कर्ण को जो कुछ भी मिलता, वह सोने में बदल जाता। इससे कर्ण काफी परेशान हुए और सूर्यदेव से अपनी समस्या का समाधान पूछा।

सूर्यदेव ने कर्ण को इंद्र से मिलने की सलाह दी। इंद्र ने बताया कि भले ही कर्ण ने बहुत दान किए हों, लेकिन उसने कभी अपने पितरों के लिए श्राद्ध में अन्न या जल का दान नहीं किया था। यही कारण था कि उसे पूर्वजों का श्राप मिला था।

कर्ण को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन उसे यह भी बताया गया कि वह अपने पितरों के बारे में कुछ नहीं जानता था, इसलिए उसने कभी उनके लिए श्राद्ध नहीं किया। इंद्र ने कर्ण को कुछ दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा ताकि वह श्राद्ध कर सके और अपनी गलती सुधार सके।

कर्ण का पश्चाताप और पितृ पक्ष की शुरुआत

पृथ्वी पर वापस आने के बाद, कर्ण ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए पिंडदान और तर्पण किया। उन्होंने जरूरतमंदों को भोजन और पानी का दान दिया, जिससे उन्हें अपनी गलती का पश्चाताप हुआ। कर्ण के इस कृत्य से पितृ पक्ष की परंपरा शुरू हुई, जिसमें लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं।

युधिष्ठिर और पितृ पक्ष का महत्व

महाभारत के युद्ध के बाद हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद पांडवों के सबसे बड़े भाई, युधिष्ठिर, मृतकों की आत्मा की शांति के लिए बोधगया आए थे। तब से यह स्थान पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध के लिए पवित्र माना जाता है। बोधगया में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इस तरह पितृ पक्ष का संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, और यह पर्व पितरों की आत्मा की शांति और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।

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