इतिहास में किन्नरों का जिक्र काफी पुराने समय से मिलता आया है. इन्हे समाज से अलग ही समझा जाता है. इन्हें थर्ड जेंडर के रूप में माना जाता है. महाभारत में जहां हिजड़े को शिखंडी के रूप में दर्शाया गया है. वहीं मुगलों और नवाबों के हरम में रानियों की देख-रेख व उनकी रक्षा के लिए हिजड़े रखे जाते थे. पुराने समय से ही मान्यता है कि हिजड़ों की दुआ या बद्दुआ अवश्य लगती है. यही आज भी माना जाता है कभी किन्नरों को नाराज़ नहीं करना चाहिए. आपको बता दें, एक वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर ने बताया कि पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी किन्नर होती हैं. उन्होंने बताया कि शिशु के जन्म के समय लड़के के जननांग देखकर यह पता लगाया जाता है कि वह कहीं हिजड़ा तो नहीं, लेकिन लड़कियों में इस बात का पता दस बारह वर्ष की आयु में चलता है जब तक उनमें मासिक धर्म न शुरू हो जाये. महिला हिजड़ों का इस समाज में रहकर भी पता नहीं चल पाता है. उनकी शादियां भी हो जाती हैं भले ही उनके बच्चे न हों. उन्होंने बताया कि ऐसी लड़कियां जिनके आंतरिक जननांग न होने के कारण उनमें मासिक धर्म न हो, उनके स्तन विकसित न हों तथा उनमें स्त्री के लक्षण के बजाय पुरुष लक्षण जैसे दाढ़ी, मूंछ या आवाज का भारी होना पाए जाएं, वह महिला हिजड़ा कहलाती है. राजस्थान मारवाड़, पंजाब व हरियाणा में हिजड़े बच्चे पैदा होने की संख्या दूसरे प्रदेशों की तुलना में काफी अधिक है. प्रकृति के इस क्रूर मजाक के कारण ही हिजड़ों का पूरा जीवन सभी पारिवारिक सुखों से वंचित रह जाता है. न उनकी शादी ही होती है और न ही उनका वंश चलाने वाले बच्चे. यहाँ बच्चे और उसके पिता को खौलते हुए दूध से नहलाया जाता है यहाँ पति ही करता है अपनी पत्नी के जिस्म का सौदा, ये है वजह यहाँ बड़े ही चाव से जानवरों का लिंग खाते हैं लोग