जानिए क्या है हिंदी दिवस का इतिहास और महत्त्व

हिंदी दिवस हर वर्ष 14 सितंबर को पूरे देश में सेलिब्रेट किया जाता है। भले ही आज तकनीकी और संवैधानिक रूप से इंडिया की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है किन्तु व्यावहारिक रूप से लोगों के दिलों में हिन्दी आज भी राष्ट्रभाषा है और संपर्क भाषा है के रूप से प्रचलित हो चुकी है। बीते कुछ वर्षों में कुछ संस्थाओं द्वारा हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की बात भी उठाई जा रही है।

आज देश की लगभग 70% आबादी हिंदी समझ सकती है और अनुमान है कि बहुत जल्द ही इंडिया की लगभग 60% आबादी हिंदी बोलने की क्षमता पर ला सकती है। लेकिन जब भी हिंदी की बात आती है तो मन इस विचार में लीन हो जाता है कि आखिर हिंदी की शुरुआत किस तरह हुई। हिंदी दिवस की शुरुआत क्यों हुई और इस दिन का क्या महत्त्व है? तो चलिए जानते है क्या है हिंदी दिवस का इतिहास और महत्त्व। 

हिंदी दिवस का इतिहास: भारत की आजादी के 2 वर्ष के उपरांत यानी कि वर्ष 1949 में, हिंदी को मान्यता दी गयी थी और देवनागरी लिपि में लिखी गई एक इंडो-आर्यन भाषा को नवगठित राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया जा चुका है। इंडिया की आजादी के उपरांत संविधान में नियमों और कानून के साथ साथ नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का मुद्दा भी मुख्य था। जिसके उपरांत 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत होकर हिंदी भाषा को राजभाषा बनाने का निर्णय ले लिया गया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने वर्ष 1918 में आयोजित हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाने का आग्रह किया जा रहा है। लेकिन इस बात को लेकर कई लोगों ने अपनी असहमति भी जताई थी इसी वजह से अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दे दिया गया था। 

हिंदी भाषा और हिंदी दिवस का महत्त्व: वैसे तो भारत विभिन्नताओं वाला देश है।  यहां हर राज्‍य की अपनी अलग सांस्‍कृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक पहचान मिली है। यही नहीं सभी जगह की बोली और भाषाएं भी अलग हैं। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इंडिया की लगभग 60 प्रतिशत जनता हिंदी भाषा को समझती और बोली जाती है। हिंदी का सम्मान करना मतलब हमारी संस्कृति का सम्मान करना भी है क्योंकि मातृभाषा के रूप में अलंकृत हिंदी वास्तव में सभी भाषााओं  से श्रेष्ठ है। जहां मातृ भाषा का सम्मान हमारा नैतिक कर्त्तव्य होना चाहिए वहीं हिंदी दिवस को भी प्राथमिकता देना प्रत्येक भारतीय का कर्त्तव्य होना जरुरी है।

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