संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में गर्भपात (अबॉर्शन) के कारण हर दिन करीब 8 महिलाओं की मौत हो जाती है, और 67% मामलों में गर्भपात के दौरान जान का खतरा बना रहता है। इस रिपोर्ट को 2007-2011 के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत में अबॉर्शन से जुड़ी चुनौतियाँ कितनी गंभीर हैं। देश में अबॉर्शन के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट लागू है, लेकिन इसमें कई सवाल उठते हैं, जैसे कि क्या महिला को अबॉर्शन के लिए पति या परिवार की अनुमति की जरूरत होती है? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं। कानूनी तौर पर कब करवाया जा सकता है अबॉर्शन? भारत में गर्भपात करवाने के लिए कानूनी प्रावधान हैं। MTP एक्ट के तहत निम्नलिखित परिस्थितियों में अबॉर्शन करवाना कानूनी तौर पर संभव है: महिला की जान को खतरा: अगर प्रेग्नेंसी महिला के जीवन के लिए खतरा बन जाए। बच्चे के विकलांग होने की आशंका: अगर संभावना हो कि बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है। महिला की शारीरिक या मानसिक स्थिति: अगर महिला शारीरिक या मानसिक रूप से गर्भधारण के लिए सक्षम नहीं है। नाबालिग लड़की: अगर कोई नाबालिग लड़की प्रेग्नेंट हो जाती है। रेप की वजह से प्रेग्नेंसी: अगर महिला बलात्कार की वजह से गर्भवती हो जाए। अबॉर्शन का फैसला कौन ले सकता है? 29 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि महिला के शरीर पर केवल उसी का अधिकार है। इसका मतलब है कि गर्भपात कराने का फैसला केवल वही महिला कर सकती है, जो गर्भवती है। आर्टिकल 21 के तहत, अगर गर्भावस्था महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, तो उसे अबॉर्शन का अधिकार है। क्या अबॉर्शन के लिए पति या परिवार की अनुमति जरूरी है? MTP एक्ट के तहत, 22 से 24 सप्ताह के अंदर अबॉर्शन का अधिकार हर महिला को दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोई भी डॉक्टर महिला पर जबरदस्ती शर्तें नहीं लगा सकता है। डॉक्टर को यह सुनिश्चित करना होता है कि MTP एक्ट की शर्तों का पालन किया जा रहा है या नहीं। लेकिन, परिवार या पति की अनुमति मांगने की कोई कानूनी जरूरत नहीं है। अबॉर्शन के लिए किसकी अनुमति जरूरी होती है? मैरिड वुमन: अगर पति ने पत्नी के साथ जबरदस्ती संबंध नहीं बनाए हैं, तो दोनों की सहमति जरूरी होती है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला (2022): अगर पति ने पत्नी के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए हैं और वह गर्भवती हो गई है, तो महिला को अबॉर्शन के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं होती। अनमैरिड लड़की या महिला: अविवाहित महिला भी बिना किसी से अनुमति लिए अबॉर्शन करवा सकती है। नाबालिग या मानसिक अक्षम महिला: नाबालिग लड़की या मानसिक रूप से असक्षम महिला के मामले में माता-पिता की सहमति आवश्यक होती है। भारत में अबॉर्शन से जुड़े कानूनी पहलू महिलाओं को उनके शरीर पर अधिकार देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला महिलाओं को आत्मनिर्णय का अधिकार देता है, जिससे वे अपने स्वास्थ्य और भविष्य के बारे में स्वयं निर्णय ले सकती हैं। यह समाज में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम है, जिसे समझना और अपनाना सभी के लिए जरूरी है। 12वीं पास के लिए नौसेना में निकली वेकेंसी, इस तारीख से शुरू होगा आवेदन 10वीं पास के लिए ITBP में निकली भर्तियां, मिलेगी जबरदस्त सैलरी CISF में निकली नौकरियां, 69000 तक मिलेगी सैलरी