माथे पर लगाई जाने वाली भस्म या चंदन की तीन रेखाओ को त्रिपुंड कहते हैं. भस्म या चंदन को हाथों की बीच की तीन अंगुलियों से लेकर सावधानीपूर्वक माथे पर तीन तिरछी रेखाओं जैसा आकार दिया जाता है. शैव संप्रदाय के लोग इसे धारण करते हैं. शिवमहापुराण के अनुसार त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से हर एक में नौ-नौ देवता निवास करते हैं. मस्तक, दोनों भुजाओं, ह्रदय और नाभि. इन पांच स्थानों को भस्म और चंदन त्रिपुण्ड लगाने के लिए उत्तम माना गया है. अत: देशकाल व परिस्थिति को देखते हुए मनुष्य पवित्र मन व शुद्ध शरीर से त्रिपुण्ड धारण करें. त्रिपुण्ड धारण करते समय ऊं नम: शिवायं मंत्र का लगातार जप करते रहें. त्रिपुण्ड धारण करने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी है. त्रिपुण्ड चंदन या भस्म का लगाया जाता है. दोनों ही मस्तक को शीतलता प्रदान करते हैं. जब हम ज्यादा मानसिक श्रम करते हैं तो हमारे विचारक केंद्र में दर्द होने लगता है. यह त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है. इससे मस्तिष्क पर अधिक दबाब नहीं पड़ता. मंगल दोष दूर करने के कुछ सरल उपाय सपने में प्राप्त करे हनुमानजी कृपा श्री कृष्ण पूरी करेगे सभी मनोकामनाये