नई दिल्ली: किसान आंदोलनकारियों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग को लेकर केंद्र सरकार ने नरमी के संकेत दिए हैं और एक समिति के गठन की बात कही है। इसके लिए किसान संगठनों से कुछ नाम मांगे गए हैं, जो समिति का हिस्सा रह सकें। फसलों की निर्धारित MSP पर खरीद होना किसानों के लिए हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है। ख़ासतौर पर हरियाणा, पंजाब और पश्चिम यूपी के किसान इसे लेकर हमेशा आवाज़ उठाते रहे हैं। किन्तु MSP का यह मुद्दा क्या सरकार के लिए इतना आसान है और अगर ऐसा है तो फिर पहले की सरकारें इसकी गारंटी देने से क्यों बचती रही हैं। भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन अपने एक लेख में कहते हैं कि MSP लागू होने से फसलों की विविधता खत्म होने का खतरा पैदा हो जाएगा। इससे किसान उन फसलों को ही पैदा करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिन पर उचित मूल्य की सरकार गारंटी दे रही है और किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं होगा। इसके साथ ही यह भी करदाताओं पर ही एक तरह का बोझ ही होगा। सरकार आवश्यकता से अधिक राशन की खरीद MSP पर करेगी, जिसकी खपत फूड सब्सिडी स्कीमों में ही होगी। इसके साथ ही बाकी राशन का रखरखाव भी एक बड़ी दिक्कत है। वहीं गेहूं और धान के अतिरिक्त अन्य ऐसी कई फसलें हैं, जिनकी पैदावार में कमी हो सकती है। वह कहते हैं कि आज हम दाल और तेल की महंगाई देखते हैं, उसका भी एक कारण यही है। अगर कुछ फसलों पर MSP लागू हुई तो इसमें और इजाफा होगा। इससे महंगाई और भड़क सकती है। इसका बड़ा नुकसान एक ओर शहरी गरीब और लोअर मिडिल क्लास के लोगों को है तो वहीं छोटे और मझोले किसानों के लिए भी यह पॉलिसी लाभकारी नहीं है। इतना ही नहीं पानी का स्तर भी निरंतर धान और गन्ने जैसी फसलों की पैदावार के कारण गिर रहा है। बता दें कि तीन कृषि कानूनों की स्टडी के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए पैनल के सदस्य और किसान नेता अनिल घनवट कहते हैं कि 23 फसलों पर MSP दिए जाने की मांग को यदि सरकार मान लेती है तो इससे देश दिवालिया होने की कगार पर आ जाएगा। उनका भी स्पष्ट कहना है कि MSP पर अनिवार्य कानून संभव नहीं है। विपक्षी दल अपने दम पर बीजेपी से नहीं लड़ सकते: दिनेश शर्मा वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के 100 वर्ष हुए पूरे, समरोह में पहुंचकर सीएम योगी ने की इनसे मुलाकात केरल में राज्यसभा की एक सीट के लिए उपचुनाव