भारत में पहले योगी थे श्यामाचरण लाहिड़ी

भारतीय इतिहास में अमर श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्म 30 सितम्बर 1828 ईस्वी में हुआ था। श्यामाचरण लाहिड़ी 18वीं शताब्दी के उच्च कोटि के साधक थे जिन्होंने योग साधना से अपने आप को बहुत प्रभावशाली बना लिया था। लाहिरी जी ने योग से न केवल अपने आप को केंद्रित किया बल्कि मन की सभी इंद्रियों को भी वश में कर लिया था। लाहिरी का जन्म बंगाल के नदिया जिले की प्राचीन राजधानी कृष्णनगर के पास धरणी नामक ग्राम के एक संभ्रांत ब्राह्मण कुल में हुआ था।  

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लाहिरी जी की प्रारंभिक शिक्षा बंगाल में हुई। इसके अलावा इन्होंने ​बंगला, संस्कृत के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा भी पढ़ी लेकिन किसी कारण वश किसी भी परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सके। जीवन जीने के लिए इन्होंने छोटी उम्र में ही सरकारी नौकरी प्राप्त कर ली। लाहिरी जी दानापुर में मिलिटरी एकाउंट्स आफिस में थे। वहीं कुछ समय के लिए सरकारी काम से उन्हें अल्मोड़ा जिले के रानीखेत नामक स्थान पर भेज दिए गया। जहां उन्हें गुरूदीक्षा प्राप्त हुई और फिर वे दीक्षा के बाद भी कई वर्षों तक नौकरी में रहे और इसी समय से गुरु के आज्ञानुसार लोगों को दीक्षा देने लगे।

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उनकी सर्वप्रथम गुरूदीक्षा उनकी पत्नि ने ही ली थी, उन्होने 1886 तक एकाउंटेंट और समर्थक के परिवार और समर्थक योग के शिक्षक की अपनी दोहरी भूमिका जारी रखी। लाहिरी जी ने योग साधना करके अपने मन और दिमाग में क्रियाओं का विस्तार करके मन पर नियंत्रण पा लिया लिया था। हिमालय की तलहटी में योग साधना की और फिर बाद में योग को विस्तार कर अपने शिष्यों को गुरूदीक्षा दी। जब उनकी पत्नि ने दीक्षा प्राप्त की तब वे उन्हें गुरू मां कहकर संबोधित करने लगे थे।  

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