अलविदा जुमा शायरियां

अलविदा अलविदा या माहे रमजान  या अल्लाह  हम ने जो रोज़े रखे, जो इबादतें कि और जो नमाजें पढ़ीं  . या अल्लाह इसको कबूल फरमा||   . और जो हम से गलतियाँ हुई ,  या अल्लाह उन्हें दरगुज़र कर देना, और हम सब को माफ़ कर देना, . हम सब कि क़यामत के दिन मगफिरत फरमाना || आमीन ||

 

खयालात ए खुदा आज रोने को है, माह ए रमजान जुदा होने को है, सोचो जरा क्या पाए हम ने, क्या अपने रब को मनाया हम ने ?  क्या जाने कभी नसीब ये माह हो ना हो , रब कि रहमत का क्या हक पाया हम ने ||  . अलविदा माह ए रमजान ||

 

वाह रमजान तेरी रुखसत को सलाम  जाते जाते आस्मां को भी रुला दिया || . अलविदा अलविदा माह ए रमजान ||

 

क्या पता अब तुमसे मिलना हो न हो चाह के फूलों का खिलना हो न हो बिन मिले ही या कहोगे अलविदा …!

 

उसकी दर्द भरी आँखों ने जिस जगह कहा था अलविदा आज भी वही खड़ा है दिल उसके आने के इंतज़ार में.

 

वो अलविदा की रस्म भी अजीब थी उसका पत्थर सा चेहरा कभी भूलता नहीं.

 

मिलता था हर रंग जिन्दगी का जिसमें, वो आज अलविदा जाने क्यो कह रहा है.

 

अजीब था उनका अलविदा कहना सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं, बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बत में की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नही.

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