होली अगल-अलग स्थानों पर अलग-अलग तरह से मनायी जाती हैं। और आज हम आपको लठामार होली के बारे में बताएगें कि यह किस तरह एक अलग अंदाज में मनायी जाती हैं। आपको बता दे कि भगवान कृष्ण की प्रियतमा राधा की जन्म भूमी बरसाना में लट्ठमार होली मनायी जाती हैं। लट्ठमार होली फाल्गुन महिने की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और फिर मंदिरों में पूजा अर्चना करने के बाद नंदगांव के पुरुष होली खेलने बरसाना गांव में आते हैं और बरसाना गांव के लोग नंदगांव में जाते हैं। इन पुरूषों को होरियारे नाम से बुलाया जाता है। कहा जाता है कि बरसाना की लठामार होली भगवान श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ कमर में फेंटा बांध कर राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेलने पहुंच जाते थे और उनके साथ ठिठोली करते थे। इस पर राधारानी और उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। इन लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढ़ालों का इस्तेमाल करते थे और यह अब धीरे-धीरे होली की परंपराओं में में शामिल हो गयी। आज भी इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जाता है। लठामार होली में नाचते, गाते लोग गांव में पहुंचते हैं तब वहा कि औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना प्रारंभ कर देती हैं और पुरुष अपने आपको बचाने के लिए भागते हैं। लेकिन यह सब मारना पीटना हंसी खुशी के वातावरण में होता है। इस बीच आसपास खड़े लोग बीच-बीच में रंग बरसाते हुए दिखते हैं। इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं। यह लट्ठमार होली आज भी बरसाना की औरतों और नंदगांव के पुरुषों के साथ खेली जाती है। Eco Friendly होली क्या है आपके लिए, ऐसा ही कुछ पूछा गया है इस विडियो में होली में भांग का ले आंनंद, जानिए भांग बनाने की विधि