भगवान महावीर के उपदेशों के द्वारा जानें जैन धर्म को

भगवान महावीर को जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है.महावीर स्वामी ने जैन ग्रन्थ के उत्तरपुराण में समवसरण में जीव आदि सात तत्त्व, छह द्रव्य, संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का नय आदि उपायों से वर्णन किया था. स्वामी महावीर के अनुसार जगत्‌ की सृष्टि, संचालन और नियंत्रण करने वाला कोई नहीं है. जगत स्वयंसंचालित और स्वयंशासित है.जैन धर्म मोक्ष को कैवल्य ज्ञान कहा जाता है. 

जैन धर्म के निर्माण में तीर्थंकर महावीर स्वामी ने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य आदि. महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया. उन्होंने कहा है कि जो भी व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर संतुलन नहीं बना पता वह जीवन भर मोह और माया में ही उलझा हुआ रहता है.जैन धर्म में तिरसठ शलाका पुरुषों में से 24 तीर्थंकरों की स्तुति का भी महत्व है  

जैन धर्म में महावीर जयंती सहित सभी चौबीस तीर्थंकरों की जयंती और निर्वाण दिवस, दीपमालिका, क्षमावाणी, श्रुत पंचमी, रक्षाबंधन, वीर शासन जयंती, अक्षय तीजा, अष्टान्हिका, शरद पूर्णीमा आदि त्योहार मनाये जाते है. जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है.

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