नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करने के मामले में इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है। अदालत में केंद्र सराकर ने समलैंगिक विवाह के अधिकार का विरोध किया है। केंद्र सरकार के बाद अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और स्टेट बार काउंसिलों ने भी इस सुनवाई का विरोध करते हुए कहा है कि देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को देखते हुए इस मामले को संसद पर छोड़ देना चाहिए। BCI के प्रमुख मनन कुमार मिश्रा और अन्य राज्य बार काउंसिलों की संयुक्त बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि यदि कोई मामला देश के मौलिक सामाजिक ढांचे में बदलाव करता है, तो इसका वृहद् स्तर पर प्रभाव पड़ता है। इसके दूरगामी अंजाम हो सकते हैं। यदि ऐसा कोई नियम लगाया जाता है, तो यह विधायी प्रक्रिया से आना चाहिए। प्रस्ताव में कहा गया है कि, शीर्ष अदालत द्वारा इस मामले में कोई भी फैसला हमारी भविष्य की पीढ़ियों के लिए हानिकारक हो सकता है। प्रस्ताव में बताया गया कि यह बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है। समाज के काफी सारे वर्ग इसका विरोध करते हैं। बार काउंसिल ने सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन किया है कि इस मामले को संसद के लिए छोड़ दिया जाए। BCI ने कहा है कि, देश के 99.9 फीसद लोग समलैंगिक विवाह का विरोध करते हैं। बहुत सारे लोगों को लगता है कि शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में होगा जो कि देश के सामाजिक धार्मिक ढांचे के खिलाफ होगा। 'मिट्टी में मिला देंगे..'. वाले सम्राट चौधरी के बयान पर सीएम नितीश ने किया पलटवार तो इस वजह से मनाया जाता है नेशनल पंचायती राज दिवस रामलला के जलाभिषेक के लिए तजाकिस्तान से जल लेकर अयोध्या पहुंचे मोहम्मद ताज