अपनी दर्द भरी आवाज़ से तीन दशकों तक लोगों के दिलों पर राज करने वाले मुकेश कुमार माथुर उर्फ़ ‘मुकेश’ जी का आज 94 वें जन्म दिवस है। आज हम आपको महान सिंगर मुकेश की जिंदगी की सुरीली यात्रा पर ले जाना चाहते है। दर्द भरे नगमों के बेताज बादशाह मुकेश जी अपनी निजी जिंदगी में भी बेहद संवेदनशील इंसान थे, वे दूसरों के दर्द को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास करते थे। शायद यही दर्द उनकी आवाज़ में भी छलकता था। बात उनकी शुरूआती जिंदगी की करे तो उनका जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता लाला जोरावर चंद माथुर एक इंजीनियर थे और वह चाहते थे कि मुकेश जी उनके नक़्शे कदम पर चले। मुकेश जी ने दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल छोड़ दिया और दिल्ली के PWD में नौकरी करने लगे। लेकिन उनके दिल में तो कुंदनलाल सहगल धड़कते थे, मुकेश जी उनके बहुत बड़े प्रशंसक थे और चाहते थे कि उन्ही की तरह गायक अभिनेता बने। जब एक बार मुकेश जी अपनी बहन की शादी में गीत गा रहे थे तभी उनके दूर के रिश्तेदार मशहूर अभिनेता मोतीलाल की उन पर नज़र पड़ी। मोतीलाल उनकी आवाज़ से इतने प्रभावित हुए कि वे उन्हें 1940 में मुंबई ले आये। मुकेश जी भी अपनी PWD की नौकरी छोड़कर निकल पड़े अपनी संगीत की यात्रा पर। मुंबई में मोतीलाल ने ना सिर्फ उन्हें अपने साथ रखा बल्कि उनको संगीत सिखाने का पूरा प्रबंध भी किया। इसी दौरान मुकेश जी को एक फिल्म निर्दोष (1941) में काम करने का मौका भी मिला, जिसमें उन्होंने गायक के रूप में अपना पहला गीत ‘दिल बुझा हो तो भी’ गाया। शुरुआत में उनकी गायकी से सहगल साहब झलकते है क्योंकि वे उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित थे। लेकिन 1948 में नौशाद के संगीत निर्देशन में फिल्म अंदाज के बाद मुकेश ने अपनी गायकी का अंदाज़ बदल दिया और अपना अलग अंदाज़ बनाया। वे गायक के साथ-साथ अभिनेता के रूप में भी अपनी पहचान बनाना चाहते थे। इसलिए उनकी बतौर अभिनेता 1953 में माशूका और 1956 में अनुराग आई। लेकिन इन फिल्मों की विफलता के बाद उन्होंने पूरी तरह से अपनी गायकी पर ही ध्यान देना शुरू किया। आगे चलकर मुकेश जी अपने दोस्त राजकपूर की आवाज़ बन गए और उनकी हर फिल्म में मुकेश जी ने गाने गाकर शोहरत की ऊँचाइयों को छुआ। मुकेश जी ने लगभग सभी बड़े संगीत निर्देशकों के साथ काम किया जिनमें शंकर-जयकिशन, नौशाद, सलिल चौधरी, कल्याण जी आनंद जी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आर डी बर्मन और खैयाम के नाम शामिल है। मुकेश जी की आवाज़ उस दौर के सभी अभिनेता पर सटीक बैठती थी फिर चाहे वो राजकपूर हो शशि कपूर, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, मनोज कुमार अमिताभ बच्चन राजेश खन्ना कोई भी हो। लेकिन उन्होंने सबसे ज्यादा गाने राजकपूर के लिए गाये थे। जब मुकेश जी का निधन हुआ तो राजकपूर ने कहा भी था मेरी आवाज़ हमेशा के लिए ख़त्म हो गई। मुकेश जी ने अपने तीन दशक के करियर में 200 से भी ज्यादा फिल्मों के लिए गीत गाये थे। उनकी गायकी का आलम ये था कि उनको चार बार फिल्म फ़ेयर आवर्ड से सम्मानित किया गया था। उनको 1974 में आई फिल्म रजनीगंधा के गाने के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड भी मिला। मुकेश जी के बारे में कहा जाता है कि वे जब गाते थे तो अपना दिल निकलकर रख देते थे, उनकी आवाज़ में एक सच्चाई छलकती थी। लेकिन इस दुनिया का उसूल है कि जिसने जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन रुखसत होना ही है। ऐसा ही मुकेश जी के साथ भी हुआ जब वे 1976 में अमेरिका में एक कंसर्ट में भाग लेने गए थे, तब 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। आज भले ही मुकेश जी हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी आवाज़ आज भी उनके गीतों में अमर है और जब तक इस दुनिया में संगीत जिंदा रहेगा तब तक मुकेश जी भी अपने बेहतरीन नगमों से जिंदा रहेंगे। आज मुकेश जी को उनके 94 वें जन्म दिवस पर पूरे न्यूजट्रेक और मेरी तरफ से शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजली। सोनाक्षी नजर आ रही है आजकल इंस्टा पर, देखिए अमेजिंग फोटोज राजामौली की फिल्म में श्रीदेवी उत्तेजक दृश्यों पर तापसी का तृप्त बयान...