कोरोना : मंदिरों की जगह अगर अस्पताल बनवाए होते तो इतने लोगों की मौत न होती ....

कोरोना महामारी का कहर अब काबू से बाहर हो गया है, अस्पतालों में मरीजों के भर्ती होने के लिए जगह कम पड़ने लगी है। कोरोना की दूसरी लहर में देश की स्वास्थय व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। हालांकि, सरकार, सेना और DRDO की सहायता से अतिरिक्त अस्पताल तैयार कर रही है और जो अस्पताल पहले से मौजूद हैं, उनमे बेड्स की संख्या बढ़ाने के लिए भी युद्धस्तर पर कार्य चल रहा है। लेकिन हमें यहां ये नहीं भूलना चाहिए कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश में इतनी बड़ी मात्रा में संसाधन उपलब्ध कराना कोई बच्चों का खेल तो नहीं है। वो भी तब, जब मेडिकल फैसिलिटी के मामले में देश आज़ादी के बाद से ही फिसड्डी रहा है। इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकारा है, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली बेंच ने देश में कोरोना की स्थिति पर एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, 

"हम इस बात से सहमत हैं कि पिछले 70 वर्षों में विरासत में मिला स्वास्थ्य ढांचा सक्षम नहीं है। ऐसा नहीं है कि हम केवल मौजूदा सरकार की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन हम जनता की सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं।" 

ऐसे में इस महामारी के दौर में, जिसमे दुनिया भर के बड़े-बड़े देशों जैसे अमेरिका, इटली आदि की भी स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है, तो भारत की हालत सुप्रीम कोर्ट पहले ही बता चुका है। इस संकट की घड़ी में देश में स्थित धर्मस्थल (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरिजाघर आदि) भी सरकार को जमकर सहयोग कर रहे हैं, लेकिन फिर भी एक शिगूफा सोशल मीडिया पर लगातार चलाया जा रहा है, वो यह कि अगर मंदिरों की जगह अस्पताल बनाए जाते तो आज इतने लोगों की मौत न होती। यहां एक चीज़ और ध्यान देने वाली है कि इसमें बुद्धिजीवी और एलीट क्लास के लोग सिर्फ मंदिरों की ही बात कर रहे हैं, इससे लोगों में भ्रम न फैले इसलिए यहां ये बताना आवश्यक हो गया है कि महामारी के इस दौर में मंदिर क्या कर रहे हैं। गुरुद्वारों के लंगर और सिखों के समर्पण के बारे में सिर्फ भारतवासी ही नहीं पूरी दुनिया जानती है, देश की कई मस्जिदें भी अस्पतालों में तब्दील हो चुकी हैं, जहाँ भूखों को खाना और मरीजों को मुफ्त दवाएं मिल रहीं हैं, गिरिजाघर भी अपने मुताबिक जरूरतमंदों की मदद में लगे हुए हैं। लेकिन ये जो 'नैरेटिव या कहें प्रोपोगैंडा' सिर्फ मंदिरों को लक्षित कर चलाया जा रहा है, उसे देखते हुए इस नैरेटिव के सामने तथ्य पेश करना मुझे आवश्यक जान पड़ा, वरना हम भारतवासी वही अंग्रेज़ों की 'फूट डालो राज करो' वाली रणनीति का  शिकार पहले भी हुए थे, अब भी हो सकते हैं। 

तो देखते हैं कुछ मंदिरों के योगदान:- 

शिरडी साई बाबा मंदिर: पिछले साल कोरोना से लड़ाई में शिरडी के श्रीसाईंबाबा संस्थान ट्रस्ट ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए राज्य सरकार को आर्थिक मदद का ऐलान किया था। ट्रस्ट ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 51 करोड़ रुपए देने का निर्णय लिया था।

तिरुपति मंदिर: दान पुण्य के नाम पर तिरुपति मंदिर का नाम अक्सर सूची में सबसे ऊपर होता है। ये मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर में स्थित है। कोरोना संकट में इन्होने आंध्र प्रदेश सरकार को 19 करोड़ रुपए का सहयोग किया था और पिछले साल यहाँ प्रवासी मजदूरों को ठहराने की व्यवस्था हुई थी।

गोरखपुर का विख्यात गोरखनाथ मंदिर: गत वर्ष मंदिर में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए रसोई चलाई थी। मंदिर ने वायरस पीड़ितों के इलाज के लिए गोरखपुर एवं बलरामपुर के तुलसीपुर में अस्पताल का संचालन भी किया। इसके अलावा गोरखनाथ पीठ और उससे संबंधित कुछ संस्थाओं और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् ने ‘पीएम केयर फंड’ एवं ‘मुख्यमंत्री राहत कोष’ में अब तक 51,00000 रुपए का योगदान भी दिया है।

यूपी के सिद्धार्थनगर में स्थित काली मंदिर: कोरोना संकट की गंभीरता को देखते हुए डुमरियागंज में बने इस काली मंदिर ने पिछले साल अपना पूरा दान पात्र प्रशासन को सौंप दिया था। खास बात ये थी कि ये दान पात्र पिछले 60 सालों से नहीं खुला था। लेकिन मंदिर ने महामारी के समय निपटने के लिए इसे प्रशासन को देकर नई मिसाल दी।

पंचकुला में माता मनसा देवी मंदिर: गत वर्ष 21 अप्रैल को हरियाणा स्थित मशहूर माता के मंदिर की ओर से 10 करोड़ रुपए कोरोना रिलीफ फंड में दिए गए थे।

मुंबई में जैन समुदाय का मंदिर: हाल में मुंबई स्थित जैन समुदाय मंदिर को कोविड 19 सेंटर बनाया गया है। यहाँ 100 बिस्तर वाले पैथोलॉजी लैब बनाए गए। पिछले साल इसी मंदिर के कोविड सेंटर में बदलने के बाद 2000 से अधिक मरीजों का यहाँ उपचार हुआ था।

महाराष्ट्र का संत गजानन मंदिर: महाराष्ट्र में बुलढाणा जिले के शेगाँव में स्थित संत गजानन महाराज मंदिर में कोरोना मरीजों के लिए 500-500 बेड के अलग-अलग आइसोलेशन परिसर बनाए हैं। इसमें एक सामुदायिक रसोई है जो 2,000 लोगों के लिए खाना तैयार करती है। ये खाना सबको निशुल्क दिया जाता है।  

मुंबई का श्री स्वामी नारायण मंदिर: मुंबई की बिगड़ती स्थिति देखते हुए इस मंदिर को कुछ समय पहले कोविड अस्पताल में तब्दील किया गया। मंदिर प्रमुख ने आश्वस्त किया कि यहाँ इलाज का ध्यान मंदिर समिति द्वारा रखा जाएगा।

पटना का महावीर मंदिर: कोरोना महामारी के संकटकाल में पटना जंक्शन पर स्थित महावीर मंदिर संक्रमितों को मुफ्त में ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए आगे आया है।  30 अप्रैल से यहाँ ऑक्सीजन वितरण का काम ऑनलाइन शुरू हुआ है। गत वर्ष भी महावीर मंदिर ने कोरोना संक्रमण के बीच आमजनों तक खाद्यान्न और जरुरी सामग्री पहुँचाई थी।

वडोडरा का स्वामी नारायण मंदिर: कोरोना मरीजों के लिए मंदिर में 500 बेड का इंतजाम किया गया है। वहाँ के सारे साधू-संत मरीजों की सेवा में जुटे हैं। मंदिर प्रशासन ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर कोविड बेड संख्या बढ़ा दी जाएगी।

वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर: मंदिर प्रशासन ने घोषणा की है कि कोरोना संक्रमित लोगों को मुफ्त दवाएँ वितरित की जाएँगी। इसका लाभ कम आय वाले वर्ग को मिलेगा। मंदिर प्रशासन द्वारा इस पर बजट भी जारी कर दिया गया है। पहले चरण में 5 हजार दवाई की पोटली तैयार हैं।  

 

पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर: मंदिर प्रशासन ने अपने नीलाचल भक्त निवास को कोविड-19 केयर सेंटर में बदलने का फैसला लिया है। 120 बिस्तरों वाली यह सुविधा कोरोना वायरस से संक्रमित मंदिर से संबंधित अधिकारियों के लिए एक समर्पित केंद्र के रूप में भी काम करेगी।

मुंबई के कांदिवली के पावन धाम मंदिर: इस मंदिर ने एक बार फिर अपनी चार मंजिला इमारत को 100 बेड से सुसज्जित कोविड-19 क्वारंटाइन सेंटर में बदल दिया है। 100 में से, 50 बेड एक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर यूनिट, ऑक्सीमीटर, पल्स मीटर, पोर्टेबल बीपी उपकरण, मॉनिटर मशीन से लैस है। इसके अतिरिक्त, 10 डॉक्टरों सहित 50 से अधिक चिकित्सा कर्मचारी सुविधा में तैनात हैं।

इस्कॉन मंदिर: इस्कॉन मंदिर की ओर से गर्भवती महिलाओं, घर में रह रहे बुजुर्ग, बच्चों व कोरोना मरीजों के लिए मुफ्त खाने की व्यवस्था की गई है। मंदिर की ओर से इसके लिए स्पेशल किचन भी बनाया गया है। एक कॉल पर मंदिर इस खाने को मुफ्त में पहुँचाएगा। इस्कॉन की तरफ से हेल्पलाइन नंबर 9717544444 जारी किया गया है। 

सिद्धिविनायक मंदिर: मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर ने  पिछले साल कोरोना संकट को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार को 10 करोड़ रुपए की मदद की थी। इसमें 5 करोड़ कोरोना के लिए और 5 करोड़ शिव भोजन के लिए दिए गए थे।

इंदौर का राधास्वामी सत्संग व्यास: कोरोना महामारी में इसे देश का दूसरा सबसे बड़ा कोविड सेंटर बनाया गया है। इसे “माँ अहिल्या कोविड केयर सेंटर” नाम दिया गया है। 600 बिस्तरों वाले इस सेंटर में मरीजों के मनोरंजन का भी प्रबंध किया गया है। आवश्यकता पड़ने पर यहाँ अधिकतम 6000 बिस्तरों की भी व्यवस्था की जा सकेगी। इसके परिसर में 10 बड़े LED लगाए गए हैं, जिसमें रामायण, महाभारत दिखाया जा रहा है।

तमिलनाडु का काँची मठ: काँची मठ ने पिछले वार्ष पीएम रिलीफ फंड को 10 लाख रुपए और सीएम रिलीफ फंड को भी 10 लाख रुपए का दान दिया था। इसके साथ ही महामारी से उबरने के लिए वहाँ प्रार्थना भी की गई थी।

अयोध्या में राम मंदिर: कोरोना संकट को देखते हुए ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ने ऑक्सीजन प्लांट को स्थापित करने की घोषणा की। इसमें 55 लाख रुपए के खर्चे को ट्रस्ट उठाएगा। ये ऑक्सीजन प्लांट दशरथ मेडिकल कॉलेज में स्थापित होगा।

छत्तीसगढ़ का माँ महामाया मंदिर: संक्रमण से चल रही जंग में महामाया मंदिर ट्रस्ट समिति ने पिछले साल मुख्यमंत्री राहत कोष में 5 लाख 11 हजार रुपए दान दिए थे। इस दान के पीछे मंदिर का उद्देश्य संक्रमितों की मदद करना था।

सारंगपुर हनुमान मंदिर: गुजरात के बोटाद जिले में स्थित प्रसिद्ध मंदिर ने पिछले साल कोरोना वायरस मरीजों के लिए अपनी धर्मशाला को 100 बिस्तरों वाले अस्पताल में बदल दिया था।

सोमनाथ मंदिर: पिछले साल राज्य के पूर्व सीएम केशूभाई पटेल की अध्यक्षता वाले श्रीसोमनाथ ट्रस्ट की ओर से कोरोना स्थिति से निपटने के लिए 1 करोड़ रुपए का दान सीएम राहत कोष में दिया गया था।

गुजरात का अंबाजी मंदिर: सीएम रिलीफ फंड में 1 करोड़ रुपए अंबाजी मंदिर ने भी डोनेट किए थे। मंदिर ने साथ ही लॉकडाउन प्रभावित इलाकों में खाना पहुँचाने का कार्य भी किया था।

राजस्थान का रानी सती मंदिर : राजस्थान के रानी सती मंदिर में गत वर्ष 200 रूम का आइसोलेशन फैसिलिटी तैयार किया था।

माता वैष्णो देवी मंदिर: कटरा स्थित माँ वैष्णो मंदिर के नॉन गैजेटेड स्टॉफ ने अपनी अपनी 1 दिन की सैलरी को स्टेट रिलीफ फंड में दान किया था। वहीं गैजेटेड स्टाफ ने 2 दिन का वेतन दान दिया था। इसके साथ ही कटरा बस्ती में जरूरतमंदों को बोर्ड उपाध्यक्ष के निर्देश पर राशन किट बाँटने का काम भी हुआ था। श्राइन बोर्ड की तरफ से आशीर्वाद कॉम्प्लेक्स जिला प्रशासन को दिया गया था, जिसमें 600 बेड डालने की जगह थी।

निष्कर्ष :- इसके अलावा भी छोटे-मोटे स्तरों पर हर धर्म के श्रद्धास्थल अपनी क्षमता के मुताबिक सेवा कार्य में जुटे हुए हैं। लेकिन यह समय उन्हें नीचे दिखाने का नहीं, बल्कि उनकी हिम्मत बढ़ाने का है। मैं किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लेना चाहूंगा, लेकिन इस तरह के बयानों से पहले उसके असर के बारे में सोच लेना चाहिए। इससे धर्मस्थलों के प्रति घृणा पैदा हो सकती है, यहां तक कि हो भी रही है और घृणा के आधार पर होने वाले अपराध बेहद ही वीभत्स होते हैं। इसलिए बहकावे में न आएं, हर चीज़ का अपना महत्व है। अस्पतालों का होना अत्यंत आवश्यक है, लेकिन इसकी कमी में किसी भी धर्मस्थान की कोई भूमिका नहीं है। मंदिर हो या मस्जिद, गुरुद्वारा हो या गिरिजाघर, हैं तो सभी इबादत के स्थान, मदद कोई भी करे, मदद तो जनता तक ही पहुंचेगी। लेकिन फिर भी कुछ लोग हौसला अफ़ज़ाई करने की जगह आलोचना करते हैं और वो भी इसलिए क्योंकि वे सिक्के के एक पहलु को ही देख पाते हैं, जो उन्हें बार-बार लगातार दिखाया जाता है। याद रखिए आलोचना करना आसान है, मदद करना मुश्किल, इसलिए किसी की भी तरफ मदद का हाथ बढ़ाएं आलोचना की उंगली नहीं।  

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