जैनो के 24वे तीर्थंकर भगवन महावीर की आरती.. महावीर भगवान की जय ज्ञान भरे इंसान की जय, इंसान में महान की जय। सत्य-अहिंसा-प्रेम-प्रदाता, महावीर भगवान की जय॥ ‘बिहार’ के होकर बिहार के विहार से कतराते हैं। ’वैशाली’ के थे इस कारण वय-शाली हो जाते हैं। ’कुण्डग्राम’ से धराधाम पर जग अभिराम बनाते हैं। वृद्धिमान हो ‘वर्द्धमान’ में महावीरता पाते हैं। त्रिशला की संतान की जय, सुत-सिद्धार्थ सुजान की जय सत्य-अहिंसा-प्रेम-प्रदाता, महावीर भगवान की जय॥ ‘श्रमण-बन्ध’ द्वारा ‘निगण्ठ’ यदि घोर तपस्या धारी है। सहज भाव से सद् गृहस्थ भी धर्म ध्यान अधिकारी है। श्रद्धा के अनुसार सभी ‘जिन’ के आलोक पुजारी हैं। त्रिलोक की क्या, लोक-लोक परलिक सभी आभारी हैं। धर्म धुरी ध्रुवमान की जय, पावन पथ प्रस्थान की जय। जड चेतन तक जैन धर्म के विश्वविदित अभियान की जय। सत्य-अहिंसा-प्रेम-प्रदाता, महावीर भगवान की जय॥ सबसे बढकर दुख, दुनिया में जन्म मरण का होना है। कारण केवल कर्म, कर्म-फल का हर बोझा ढोना है। कर्म फलों के मूल रूप में मन के अंकुर बोना है। मन हिंसा का मूल, सभी कुछ मन का रोना धोना है। जन-जीवन-जलयान की जय, संयम-सिन्धु सुजान की जय। जन्म-मरण के रहस्य भेदी, कर्मठ-कर्म-विधान की जय। सत्य-अहिंसा-प्रेम-प्रदाता, महावीर भगवान की जय॥ सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र, अगर जीवन में आते हैं। प्रपंच तज, यदि पंच-वृत को श्रद्धा से अपनाते हैं। मुख्य रूप से अगर अहिंसा-परमो धर्म निभाते हैं। तो भवसागर तज कर प्राणी सहज मोक्ष पद पाते हैं। पंच-वृत-परिधान की जय, रत्नत्रय की खान की जय। ब्रह्मचर्य-अस्तेय-अहिंसा-सत्परिग्रह परिणाम की जय। सत्य-अहिंसा-प्रेम-प्रदाता, महावीर भगवान की जय॥ परशुरामस्तोत्रम् कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेणुकात्मजम् । बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध मेरे भाग्य में कितना धन है?