आतंकवाद विरोधी दिवस पर उन सभी लोगों को भी याद किया जाता है जिन्होंने आतंकवाद के काले दौर में खुद की जान की परवाह किए बिना ही देश की रक्षा करते रहे। सबसे बुरा दौर पंजाब पुलिस ने देखा है। आतंकियों ने उनके घर और परिवार को टारगेट किया। बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जिन्होंने आतंकवाद में अपनों को खो दिया लेकिन उनके आगे घुटने नहीं टेके। देश और लोगों की सुरक्षा के अपने फर्ज से कभी भी नहीं हटे। आतंक के विरुद्ध जंग में उनके कदम कभी डगमगाए नहीं। आज भी वे देश व समाज के प्रहरी बने हुए हैं और अपना कर्तव्य बखूबी पूरा कर रहे है। सात-आठ अक्टूबर, 1991 की रात को हल्की सर्दी थी। उस रात ने मुल्लांपुर दाखा के पास गांव लीहां के राम जी की जिंदगी में कोहराम मचा दिया है। आतंकवाद के उस काले दौर में उनके पिता इंस्पेक्टर भाग सिंह, भाई दर्शन सिंह एसपीओ और खुद राम जी पटियाला पुलिस में सिपाही के पद पर कार्यरत थे। उस रात को याद कर राम जी भावुक हो जाते हैं। कहते हैं उस दिन माता की बरसी थी। रिश्तेदार भी घर आए थे। पिता भाग सिंह, बेटा मनप्रीत सिंह, वे खुद, भाई परसन सिंह, बुआ भगवान कौर, उनका बेटा गुरमीत सिंह कुकू, मासी का बेटा गुरमीत सिंह, भाई का साला गुरमीत सिंह मीता सब गहरी नींद में थे। रात को अचानक आतंकवादियों ने घर पर हमला कर दिया था और अंधाधुंध फायरिंग करने लग गए थे। पिता और मैंने तूड़ी वाले कमरे में छिपकर जान को बचाया था। उनका सवा साल का बेटा मनप्रीत पैरऔर पेट में गोली लगने की वजह से जख्मी हो गया था। बाकी सभी को आतंकवादियों ने गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया था। उस समय आतंकी पुलिस पर हमला कर उनका हौसला तोड़ना चाहते थे, इसलिए उनके परिवारों को टारगेट कर रहे थे। दोनों भाई और रिश्तेदार खो दिए। जिसके उपरांत पिता और मैंने ठान लिया कि पीछे नहीं हटेंगे। पुलिस में सेवाएं देना बंद नहीं की। उसके बाद भी कई बार आंतकवादियों से सामना हुआ। वर्ष 1994 में पिता की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। राम जी आज भी पंजाब पुलिस में बतौर एएसआइ सेवाएं दे रहे हैं। 12 देशों में मंकीपॉक्स के 80 से अधिक मामलों की पुष्टि: WHO वेस्ट बैंक में इजरायली सैनिकों के साथ झड़प में दर्जनों फिलीस्तीनी घायल योन सुक-येओल, जो बिडेन अर्थव्यवस्था पर पहला शिखर सम्मेलन आयोजित करने के लिए तैयार