मीटू अभियान के तहत आरोपों में घिरे विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। 10 दिन पहले पत्रकार प्रिया रमानी ने एमजे अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। उसके बाद एक के बाद एक करीब 20 महिला पत्रकारों ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया। इन आरोपों से घिरने के बाद एमजे अकबर के इस्तीफे की मांग विपक्षी दल कर रहे थे। हालांकि अकबर ने आरोप लगने के 10 दिन बाद अपना इस्तीफा दिया और अब बीजेपी इसे नैतिकता के आधार पर दिया गया इस्तीफा बता रही है। अगर गौर से देखा जाए, तो एमजे अकबर का इस्तीफा देना पूरी तरह से बीजेपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा नजर आता है। दरअसल, पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और एमजे अकबर पर लगे आरोपों को लेकर कांग्रेस लगातार बीजेपी पर निशाना साध रही थी। जब से अकबर पर आरोप लगा था, तब से ही कांग्रेस ने इसे अपना चुनावी हथियार बना लिया था और रैलियों में वह इस मुद्दे को उछालकर बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी। इतना ही नहीं इस मामले को लेकर बीजेपी के नेताओं की चुप्पी को लेकर भी लगातार सवाल दागे जा रहे थे। यह मामला इतना बढ़ गया था कि अगर एमजे अकबर इस्तीफा न देते, तो इसे 2019 के लोकसभा चुनावों में भी मुद्दा बनाने से कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल न चूकते। अकबर बीजेपी के लिए एक बड़ा मुस्लिम चेहरा थे, इसलिए बीजेपी नहीं चाहती थी कि उनका इस्तीफा हो। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस इसे मुद्दा बना रही थी, तो ऐसे में बीजेपी के पास अब एक ही रास्ता बचा था कि वह अकबर से इस्तीफा ले ले। सूत्रों से ऐसी जानकारी भी मिली है कि अकबर अपना इस्तीफा नहीं देना चाहते थे, बल्कि पीएम मोदी के कहने पर उन्होंने इस्तीफा दिया। दरअसल, बीजेपी किसी भी कीमत पर आगामी चुनावों में अपनी छवि को लेकर कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। अकबर से इस्तीफा लेकर बीजेपी ने खुद को आगामी चुनावों में महिलाओं का हितैषी दिखाने का ट्रंप कार्ड खेला है, जिसका उसे फायदा मिल सकता है। जानकारी और भी मंदिरों के सहारे वनवास खत्म करने की जुगत में कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी समझे न्यायपालिका! कब लगेगा रेल हादसों पर ब्रेक?