कहा जाता है माता गायत्री का प्राकट्य ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि को हुआ था। जी हाँ और इस बार गायत्री जयंती 11 जून 2022 शनिवार यानी आज मनाई जा रही है। जी दरअसल ऋग्वेद की शुरुआत गायत्री मंत्र से ही होती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं गायत्री मंत्र, स्तुति, कथा। गायत्री मंत्र : 'ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।। कथा- पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रह्माजी की 5 पत्नियां थीं- सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती। मान्यता है कि पुष्कर में यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। यह गायत्री संभवत: उनकी पुत्री नहीं थी। इससे सावित्री ने रुष्ट होकर ब्रह्मा को जगत में नहीं पूजे जाने का शाप दे दिया था। हालांकि इसके बारे में भी पुराणों में स्पष्ट नहीं है। वहीं गायत्री माता को आद्याशक्ति प्रकृति के पांच स्वरूपों में एक माना गया है। कहा जाता है कि किसी समय में यह सविता की पुत्री के रूप में जन्मी थीं, इसलिए इनका नाम सावित्री भी पड़ा। कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया था जिसके चलते इनका एक नाम ब्रह्माणी भी हुआ। आपको यह भी बता दें कि राजस्थान के अजमेर पुष्कर के निकट मणिबन्ध मणिदेविक गायत्री शक्तिपीठ है। वहीं पुष्कर में ही गायत्री माता का प्राचीन मंदिर भी है। आप सभी को पता हो कि हरिद्वार शांतिकुंज वाले गायत्री परिवार ने देश-दुनिया में गायत्री शक्तिपीठ स्थापित कर रखें हैं वहां पर आप गायत्री मंदिर में माता गायत्री के दर्शन कर सकते हैं। श्री गायत्री चालीसा स्तुति- ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचंड ॥ शांति कांति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखंड ॥1॥ जगत जननी मंगल करनि गायत्री सुखधाम । प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥2॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी । गायत्री नित कलिमल दहनी ॥॥ अक्षर चौबीस परम पुनीता । इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥॥ शाश्वत सतोगुणी सत रूपा । सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥ हंसारूढ श्वेतांबर धारी । स्वर्ण कांति शुचि गगन-बिहारी ॥॥ पुस्तक पुष्प कमंडलु माला । शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥॥ ध्यान धरत पुलकित हित होई । सुख उपजत दुख दुर्मति खोई ॥॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अद्भुत माया ॥॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ॥॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली । दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥ तुम्हरी महिमा पार न पावैं । जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥॥ चार वेद की मात पुनीता । तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥ महामंत्र जितने जग माहीं । कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥ सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै । आलस पाप अविद्या नासै ॥॥ सृष्टि बीज जग जननि भवानी । कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥ ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ॥॥ तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥॥ महिमा अपरम्पार तुम्हारी । जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥॥ पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जगमें आना ॥॥ तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा ॥॥ जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥ तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई । माता तुम सब ठौर समाई ॥॥ ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥॥ सकल सृष्टि की प्राण विधाता । पालक पोषक नाशक त्राता ॥॥ मातेश्वरी दया व्रत धारी । तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥ जापर कृपा तुम्हारी होई । तापर कृपा करें सब कोई ॥॥ मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित हो जावें ॥॥ दरिद्र मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुख हरै भव भीरा ॥॥ गृह क्लेश चित चिंता भारी । नासै गायत्री भय हारी ॥॥ संतति हीन सुसंतति पावें । सुख संपति युत मोद मनावें ॥॥ भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ॥॥ जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥ घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥॥ जयति जयति जगदंब भवानी । तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥ जो सतगुरु सो दीक्षा पावे । सो साधन को सफल बनावे ॥॥ सुमिरन करे सुरूचि बडभागी । लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥ अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ॥॥ ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी । आरत अर्थी चिंतित भोगी ॥॥ जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मन वांछित फल पावें ॥॥ बल बुधि विद्या शील स्वभाउ । धन वैभव यश तेज उछाउ ॥॥ सकल बढें उपजें सुख नाना । जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥ दोहा यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई । तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥ आज है त्रिविक्रम द्वादशी, इस तरह करें पूजा रोग नाशक है गायत्री मंत्र लेकिन जाप के समय न करें ये भूल साल 2022 में कब-कब हैं प्रदोष व्रत, जानिए यहाँ पूरी लिस्ट