मध्यप्रदेश की राजधानी की सेन्ट्रल जेल में सुरक्षा गार्ड की बर्बरतापूर्ण हत्या कर भागे सिमी आतंकियों के एनकाउंटर को लेकर प्रदेश की सियासत में जमकर बवाल मचा हुआ है. जहां के तरफ पुलिस ने जेल से फरार होने के महज 8 घंटे बाद ही खूंखार आतंकियों को ढेर कर दिया वही दूसरी और पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए. देश- प्रदेश में सिमी आतंकियों के एनकाउंटर पर गर्माती सियासत पर एमपी के जबांज और विलक्षण प्रतिभा के धनी आईपीएस अधिकारी पवन जैन ने लिखा है- आजकल मध्यप्रदेश की जेल में प्रहरी की जघन्य हत्या कर फरार हुए 8 अपराधियों की पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर तमाम मीडिया, जनवादी संगठनों, राजनेताआें, राष्ट्रवादी और मौका परस्तों द्वारा घटना के तथ्यों की मनचाही विवेचना कर निष्कर्ष पर पहुंचने की होड़ मची हुई है. निन्दा, आलोचना, दोषारोपण, तोहमत और कालिख लगाने के लिये पुलिस से बेहतर लक्ष्य कोई दूसरा नहीं हो सकता है. यूं तो पानी, बिजली, सड़क, भ्रष्टाचार,मंहगाई, बेरोजगारी, तमाम समस्याएं हैं, जुलूस, धरने,आंदोलन और प्रदर्शन के लिये, पुलिस न तो इन समस्याआें के कारण में है और न समाधान में, इतना जरूर है कि जब भी इन प्रदर्शनों में जमा भीड़ बेकाबू होती है और हिंसा, तोड़-फोड़ तथा आगजनी पर उतारू हो जाती है तो कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये पुलिस को कमान संभालनी पड़ती है. हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिये पुलिस को कभी लाठी, कभी अश्रु गैस और कभी गोलीबारी का सहारा लेना पड़ता है. मूल समस्याएं तो उतर जाती हैं लोगों के दिमाग से और पुलिस की ज्यादती जांच का मुद्दा बन जाती है. समस्याआें से ध्यान हटाने का और पुलिस के सिर कालिख पोतने का यह नुस्खा, जो अग्रेजों ने हिन्दुस्तान में आजमाया था, कमोवेश आज भी जारी है।चूक किसी की भी हो, खामियाज़ा पुलिस को ही भुगतना पड़ता है. भोपाल में भी जेल प्रहरी की निर्मम हत्या कर केन्द्रीय जेल की ऊंची दीवारें फलांग कर फरार हुए इन दुर्दांत आततायियों को पकड़ने की जिम्मेदारी भी दीपावली की उस रात थकी-हारी पुलिस की ही थी. जघन्य अपराध के आदी इन क्रूर हत्यारों को पकड़ने में पुलिस ने कोई कोताही नहीं बरती और कुछ घण्टों में ही उन्हें धराशायी भी कर दिया. अब सवाल यह है कि अपराधी असली थे और पुलिस भी असली तो फिर मुठभेड़ फर्जी कैसे हो सकती है?जहां जान का आसन्न खतरा हो, वहां क्या पुलिस समुचित बल का प्रयोग भी नहीं कर सकती? जब इस देश में एक कानून का तंत्र, लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं, मानव अधिकार के संगठन और स्वतंत्र न्यायपालिका है तो हर कोई अपना निर्णय क्यों सुना रहा है? - पवन जैन