लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ने वाले लाखों छात्रों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें मदरसा एक्ट को संविधान के खिलाफ करार दिया गया था। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि मदरसे अब 12वीं कक्षा तक के सर्टिफिकेट दे सकते हैं, लेकिन उससे आगे की शिक्षा जैसे 'कामिल' (अंडर ग्रेजुएशन) और 'फाज़िल' (पोस्ट ग्रेजुएशन) की डिग्री देने का अधिकार उन्हें नहीं होगा, क्योंकि यह यूजीसी अधिनियम के तहत उचित नहीं है। यह निर्णय यूपी के हजारों मदरसों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है। राज्य में लगभग 23,500 मदरसे हैं, जिनमें से 16,513 को मदरसा बोर्ड की मान्यता प्राप्त है। इन मान्यता प्राप्त मदरसों में 560 ऐसे मदरसे हैं, जिन्हें सरकारी सहायता मिलती है, और इन्हें 'एडेड' मदरसे कहा जाता है। इसके अलावा, लगभग 8000 मदरसे ऐसे हैं जिन्हें कोई मान्यता नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनाया। अदालत ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला सही नहीं था और मदरसा एक्ट को संवैधानिक रूप से वैध माना जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट का यह कहना कि मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, उचित नहीं था। मदरसा शिक्षा को नियंत्रित करने वाला यह कानून 2004 में उत्तर प्रदेश में लागू किया गया था। इसके तहत, मदरसा शिक्षा को व्यवस्थित करने और इसे आधुनिक शिक्षा के साथ एकीकृत करने के लिए एक बोर्ड की स्थापना की गई थी। मदरसा बोर्ड अरबी, उर्दू, फारसी, इस्लामी अध्ययन, पारंपरिक चिकित्सा (तिब्ब), और दर्शन जैसे विषयों के साथ-साथ सामान्य विषयों जैसे विज्ञान, गणित और भाषाओं की शिक्षा प्रदान करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य एक संरचित और सुसंगत पाठ्यक्रम सुनिश्चित करना है, ताकि धार्मिक और सामान्य शिक्षा दोनों को छात्रों तक पहुँचाया जा सके। बोर्ड मुंशी (10वीं कक्षा) और मौलवी (12वीं कक्षा) की परीक्षाएं आयोजित करता है, और सफल छात्रों को प्रमाण पत्र प्रदान करता है जो अन्य शैक्षणिक संस्थानों द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त, बोर्ड उन मदरसों को मान्यता प्रदान करता है जो शैक्षिक और प्रशासनिक मानकों को पूरा करते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि शिक्षा का स्तर उच्च बना रहे, बोर्ड शिक्षकों की ट्रेनिंग, भर्ती और मूल्यांकन की प्रक्रिया की देखरेख भी करता है। मदरसा एक्ट में प्रावधान है कि राज्य सरकार मदरसों को बुनियादी ढांचे के विकास, संसाधनों में सुधार और शिक्षकों के वेतन के लिए फंडिंग प्रदान कर सकती है। हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहले मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार दिया था और कहा था कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि राज्य सरकार मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य स्कूल शिक्षा प्रणाली में शामिल करे। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि किसी भी सरकार को धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट के इस फैसले को अंशुमान सिंह राठौड़ की याचिका पर सुनाया गया था, जिन्होंने मदरसा एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। अदालत ने अपने फैसले में यह तर्क दिया था कि यह कानून संविधान के बुनियादी ढांचे के विरुद्ध है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जहाँ अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के हजारों मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों और शिक्षकों में राहत की भावना है। यह निर्णय मदरसा शिक्षा के महत्व और उसकी संरचना को बनाए रखने के पक्ष में है, जिससे राज्य में मदरसे अपनी शैक्षणिक गतिविधियाँ जारी रख सकें। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि मदरसों को 'कामिल' और 'फाज़िल' की डिग्री देने का अधिकार नहीं होगा, क्योंकि यह यूजीसी अधिनियम का उल्लंघन है। इसका मतलब है कि छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए अन्य मान्यता प्राप्त संस्थानों में जाना होगा। मदरसा एक्ट के तहत, बोर्ड का मुख्य उद्देश्य धार्मिक शिक्षा को आधुनिक विषयों के साथ संतुलित करना है। इसके अलावा, मदरसों में व्यावसायिक और कौशल-आधारित प्रशिक्षण देने के प्रयास भी किए जा रहे हैं, जिससे छात्रों को रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकें। यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को इस्लामी ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी मिल सके, ताकि वे समाज में बेहतर योगदान दे सकें। इसके साथ ही, राज्य सरकार द्वारा मदरसों का आधुनिकीकरण और छात्रों को समकालीन ज्ञान से लैस करने के प्रयास भी जारी हैं। उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा प्रणाली एक महत्वपूर्ण पहलू है, और सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इसे संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक और सामान्य शिक्षा के बीच संतुलन बना रहे और छात्रों को दोनों प्रकार की शिक्षा का लाभ मिले। अखंड भारत का असली निर्माता..! बैंगलोर में लगे सिख गुरुओं के हत्यारे औरंगज़ेब के पोस्टर पंजाब: हिन्दू नेताओं पर बम फेंकने के आरोप में बब्बर खालसा का 4 आतंकी गिरफ्तार वाराणसी में महिला और तीन बच्चों की हत्या, वारदात के बाद फरार हुआ पति