माघ मेला 2020: जानिये कल्पवास का महत्व और मन्त्र

प्रयागराज में 43 दिनों तक चलने वाला माघ मेला जारी हुआ है. वही इसी के साथ कल्पवास भी शुरू हो गया है. इसके साथ ही कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि प्रयाग में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प का पुण्य मिलता है. वही माघ मेले के दौरान संगम तट पर कल्पवास का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि कल्पवास तभी करना चाहिए जब व्यक्ति संसारी मोह-माया से मुक्त हो गया हो जिम्मेदारियों को पूरा कर चुका हो. ऐसा इसलिए क्योंकि जब व्यक्ति जिम्मेदारियों में जकड़ा होता है तो उस पर आत्मनियंत्रण थोड़ा कठिन हो जाता है. पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास की पूर्ण व्यवस्था का वर्णन किया है. उनके मुताबिक कल्पवासी को 21 नियमों का पालन करना चाहिए.

ये हैं नियम- सत्यवचन, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन, सभी प्राणियों पर दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग, सूर्योदय से पूर्व शैय्या-त्याग, नित्य तीन बार सुरसरि-स्न्नान, त्रिकालसंध्या, पितरों का पिण्डदान, यथा-शक्ति दान, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिन्दा त्याग, साधु सन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न कराना होता है . जिनमें से ब्रह्मचर्य, व्रत एवं उपवास, देव पूजन, सत्संग, दान का विशेष महत्व बताया गया है. ब्रह्मचर्य-ब्रह्मचर्य का तात्पर्य है ब्रह्म में विचरण करना अर्थात स्वयं ब्रह्म होने की ओर अग्रसर हो जाना. सरल शब्दों में कहा जाए तो कामासक्ति का त्याग ही ब्रह्मचर्य है. जैसे विलासिता पूर्ण व्यसनों का त्याग, गरिष्ट भोज्य पदार्थों का त्याग, कम वासना का त्याग ब्रह्मचर्य पालन के मुख्य अंग हैं.

व्रत एवं उपवास- व्रत एवं उपवास कल्पवास का अति महत्वपूर्ण अंग है| वही कुम्भ के दौरान विशेष दिनों पर व्रत रखने का विधान किया जाता है. व्रतों को दो कोटियों में विभाजित किया गया है - नित्य एवं काम्य. नित्य व्रत से तात्पर्य बिना किसी अभिलाषा के ईश्वर प्रेम में किये व्रतों से है, जिसकी प्रेरणा अध्यात्मिक उत्थान पे होती है. वहीँ काम्य व्रत किसी अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिए किये गये व्रत होते हैं. व्रत के दौरान धर्म के दसों अंगों का पूर्ण पालन किया जाना आवश्यक होता है. ये दस धर्म हैं - धैर्य, क्षमा, स्वार्थपरता का त्याग, चोरी न करना, शारीरिक पवित्रता, इन्द्रियनिग्रह, बुद्धिमता, विद्या, सत्य वाचन एवं अहिंसा. इसके सम्बन्ध में एक श्लोक में वर्णन भी मिलता है.

धृतिः क्षमा दमोअस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः. धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्.

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