शिव सबके हैं और सब उनके, चाहे वो देव, असुर, मनुष्य कोई भी हो, शिव को किसी से कोई भेदभाव नहीं हैं, जो भी उन्हें पुकारता है, वे उसकी मनोकामना पूरी कर देते हैं. सृष्टि के उत्पत्ति कर्ता भोलेनाथ का एक नाम सोमनाथ भी है, जो उन्हें सोम अर्थात चंद्र के कारण मिला है. पुराणों के अनुसार कथा यह है कि, चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ था, उनमे से चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख, शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष के सामने अपना दु:ख प्रकट किया, स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के दक्ष ने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि, तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे. शनै:-शनै: चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गई, तब उन्हें नारद जी ने शिव आराधना करने का मार्ग सुझाया. चन्द्रमा ने एकाग्र होकर शिव की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने चंद्र को अपने मस्तक पर धारण कर लिया और उन्हें वरदान दिया कि, जिस तरह तुम्हारी कलाएं 15 दिनों तक क्षीण होंगी, उसी तरह अगले 15 दिनों तक वे बढ़ेंगी भी. तभी से चंद्र के दोष निवारण के लिए पुराणों में शिव पूजन का उल्लेख मिलता है. अगर कुंडली में चन्द्रमा पीड़ित हो तो, सबसे पहले माता पर मुसीबत आती है, उनका स्वस्थ्य ख़राब रहता है, नज़र का कमज़ोर होना या अंधा हो जाना भी क्षीण चंद्र के लक्षण हैं. इसके अलावा ह्रदय रोग, मानसिक अस्थिरता और शरीर में पानी की कमी भी चन्द्रमा की वजह से होती है. स्त्रियों का अगर चन्द्रमा ख़राब हो तो उन्हें मासिक धर्म और प्रजनन से सम्बंधित समस्याएं आती है. इन सभी समस्याओं के लिए शिवलिंग का दुग्धाभिषेक ही सर्वोत्तम उपाय है, जिससे भोलेनाथ की कृपा प्राप्त कर चन्द्रमा प्रबल होता है और जीवन रसमय बन जाता है. महाशिवरात्रि पर 100 साल बाद आया ये महासंयोग जानें, नेपाल में कैसे मनेगी महाशिवरात्रि ज्योतिष के अनुसार महाशिवरात्रि पूजा और व्रत 13 तारीख को