आप सभी को बता दें कि उत्तराखंड में अल्मोड़ा के पास स्थित जागेश्वर धाम भगवान सदाशिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है और कहते हैं कि यह पहला ऐसा मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम शुरू की गई थी. कहते हैं जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहते हैं और जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है. कहते हैं यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग मानते है और इसे योगेश्वर नाम से भी जानते हैं. आपको बता दें कि यह मंदिर शिवलिंग पूजा के आरंभ का गवाह माने जाते हैं. इसी के साथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी. कहते हैं पुराने समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं, जिसका भारी दुरुपयोग होने लगा. आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की थी. ऐसे में अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं और यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित करते हैं. कहते हैं उन्होंने ही सर्वप्रथम इन मंदिरों की स्थापना की थी और जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं. कहते हैं जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है और मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से करते है. महाशिवरात्रि पर सबसे असरदार होता है महामृत्युंजय मंत्र, यह है शुभ नियम क्या आप जानते हैं कौन है भोलेनाथ, ब्रह्मा और विष्णु भगवान के पिता? 4 मार्च को है महाशिवरात्रि, यहाँ जानिए शुभ मुहूर्त