राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने विश्व के सबसे बड़े जनांदोलन का नेतृत्व किया था. यह जनांदोलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ था. गांधीजी के जनांदोलन ने हमें अन्यायी सत्ता के खिलाफ संघर्ष करने के लिए दो अहम औज़ार दिए – अहिंसा और सत्याग्रह. उन्होंने हमें यह सिखाया कि नीतियां बनाते समय हमें समाज की अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति का ख्याल रखना चाहिए. जिन विचारों के आधार पर उन्होंने अपने आंदोलनों को आकार दिया, वे विचार गांधीजी अपनी मां के गर्भ से साथ लेकर नहीं आये थे. वही वे विचार समय के साथ विकसित हुए और उन्हीं विचारों ने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन की नींव रखी. वे कहा करते थे कि उनका जीवन ही उनका सन्देश है. उनका व्यक्तित्व तथा कृतित्व, दुनिया भर के औपनिवेशिकता और नस्लवाद विरोधी आंदोलनों की प्रेरणा बना. वे भारत में सामाजिक समानता की स्थापना के पैरोकार थे और जाति प्रथा का उन्मूलन उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य था. ये तत्व महात्मा गाँधी की पूरी जीवन यात्रा को समग्र रूप में नहीं देख रहे हैं और उनके शुरूआती लेखन के चुनिन्दा अंशो का हवाला दे रहे हैं. वे उनकी लाइफ के सिर्फ उस दौर की बात कर रहे हैं जब वे नस्ल और जाति के नाम पर समाज में व्याप्त अन्यायों के खिलाफ लड़ रहे थे. हाल में जॉर्ज फ्लॉयड की क्रूर हत्या के पश्चात् शुरू हुए ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आन्दोलन के दौरान, अमरीका में कुछ प्रदर्शनकारियों ने गांधीजी की प्रतिमा को हानि पहुंचे. इसके पहले, घाना में उन्हें नस्लवादी करार देते हुए उनकी एक प्रतिमा को उखाड़ फेंका गया था और ‘रोड्स मस्ट फाल’ की तर्ज पर ‘गाँधी मस्ट फाल’ आन्दोलन चलाया गया था. गाँधी को किसी भी स्थिति में रोड्स और उसके जैसे अन्यों, जिन्होंने अश्वेतों को गुलाम बनाने में मुख्य किरदार अदा की थी, की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. अपने जीवन के आरम्भिक दौर में गांधीजी ने काम पर आधारित वर्णाश्रम धर्म की वकालत की. उन्होंने मैला साफ़ करने के काम का महिमामंडन किया और दलितों को हरिजन का नाम दिया. उत्तराखंड में अभी नहीं खुलेंगे स्कूल, सभी पक्षों से ली जाएगी राय हाथरस मामले पर बोले कन्हैया कुमार - 'जलाने से भला सच कहाँ दफ़न होता है' उत्तराखंड के मुख्य सचिव ओम प्रकाश के निजी सचिव हुए कोरोना संक्रमित