आप सभी को बता दें कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को 599 ईसवीं पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के घर हुआ था. हर साल उनके जन्म को महावीर जयंती के नाम से मनाया जाता है जो इस साल 6 अप्रैल को है. आप सभी को बता दें कि भगवान महावीर जी के बचपन का नाम वर्धमान था और उनके जन्म के बाद राज्य दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था. इसी वजह से उनका नाम वर्धमान रखा गया. महावीर जयंती का पर्व जैन अनुयायियों द्वारा पूरी दुनिया में मनाया जाता है और जैन ग्रंथों के अनुसार, 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 साल बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ था. आपको बता दें कि उनका, 'अहिंसा परमो धर्म: अर्थात अहिंसा सभी धर्मों से सर्वोपरि है' यह संदेश पूरी दुनिया में मशहूर है और यह संदेश उन्होंने ही दिया था और संसार का मार्गदर्शन किया था. कहा जाता है पहले स्वयं अहिंसा का मार्ग उन्होंने अपनाया और फिर दूसरों को इसे अपनाने के लिये प्रेरित किया. ‘जियो और जीने दो’ का मूल मंत्र भी उन्ही ने दिया था. वर्धमान महावीर से जुड़ी मान्यताएं - जैन धर्म के अनुयायी कहते हैं कि 'वर्धमान ने 12 वर्षों की कठोर तप कर अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया. जिससे उन्हें जिन कहा गया, विजेता कहा गया. उनका यह तप किसी पराक्रम से कम नहीं था. इसी के चलते उन्हें महावीर नाम से संबोधित किया गया और उनके दिखाए मार्ग पर चलने वाले जैन कहलाते हैं.' वहीं जैन का तात्पर्य ही है जिन के अनुयायी. इसी के साथ जैन धर्म का अर्थ है जिन द्वारा परिवर्तित धर्म. दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर ने कठिन दिगम्बर चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे. हालाँकि श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति दिगम्बर अवस्था में की. ऐसा माना जाता है कि भगवान महावीर अपने पूरे साधना काल के दौरान मौन ही रहे थे उन्होंने एक शब्द नहीं कहा था.