इस कथा का श्रवण किये बिना पूरा नहीं होता महेश नवमी का व्रत

हिंदू धर्म में महेश नवमी का विशेष महत्व है। कहा जाता है यह पावन दिन भगवान शंकर व माता पार्वती को समर्पित होता है। वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी कहा जाता है। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ व माता पार्वती की विधिवत पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आप सभी को बता दें कि इस साल महेश नवमी 9 जून को पड़ रही है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं इस पावन दिन की कथा।

महेश नवमी कथा (Mahesh Navami Katha)- पौराणिक कथाओं के अनुसार, खडगलसेन नाम का एक राजा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। लाख उपायों के बाद भी उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हुई। राजा के घोर तपस्या करने के बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा ने अपने पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। ऋषि-मुनियों ने राजा को बताया कि सुजान को 20 साल तक उत्तर दिशा में जाने की मनाही है। राजकुमार के बड़े होने पर उन्हें युद्ध कला और शिक्षा का ज्ञान मिला। राजकुमार बचपन से ही जैन धर्म को मानते थे। एक दिन 72 सैनिकों के साथ राजकुमार जब शिकार खेलने गए तो वह गलती से उत्तर दिशा की ओर से चले गए। सैनिकों के लाख मना करने पर भी राजकुमार नहीं मानें। उत्तर दिशा की ओर ऋषि तपस्या कर रहे थे।

राजकुमार के उत्तर दिशा में आने पर ऋषियों की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने राजकुमार को श्राप दे दिया। राजकुमार को श्राप मिलने पर वह पत्थर के बन गए और साथ ही साथ उनके साथ के सिपाही भी पत्थर के बन गए। जब इस बात की जानकारी राजकुमार की पत्नी चंद्रावती को हुई तो उन्होंने जंगल में जाकर माफी मांगी और राजकुमार को श्राप मुक्त करने के लिए कहा। ऋषियों ने कहा कि महेश नवमी के व्रत के प्रभाव से ही अब राजकुमार को जीवनदान मिल सकता है। तभी से इस दिन भगवान शंकर व माता पार्वती की पूजा की जाती है।

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