चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल थल में उपरोक्त वर्णित कविता की ये पंक्यिाॅं तो संभवतः आपने पढ़ी, या सुनी होगी ही। क्या आप जानते हैं इन पंक्तियों की रचना किसने की। हम आपको बताते हैं। इसकी रचना मैथिलीशरण गुप्त ने की। मैथिलीशरण गुप्त जितने अच्छे कवि देशभक्ति की रचनाओं के थे उतना ही अच्छा चित्रण वे अपनी रचनाओं में प्रकृति प्रेम को लेकर किया करते थे। उनका जन्म 3 अगस्त को वर्ष 1986 में हुआ था। वे ऐसे कवि थे। जिनकी कविताओं से निराश मन को प्रेरणा मिलती है। कविता की दुनिया के सरताज मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि के तौर पर जाना जाता है। उनके पिता से ही उन्हें कविता का रस मिला था दरअसल उनके पिता काव्य प्रेमी थे और भगवान राम की भक्ति में उनका मन रमता था। उनकी माता का नाम कौशल्या बाई था और मैथिलीशरण के तौर पर यह उनकी तीसरी संतान थी। मैथिलीशरण गुप्त विद्यालय जीवन में खेलने में अधिक व्यस्त रहते थे। मगर उन्हें घर पर हिंदी, बंगला और संस्कृत साहित्य का अध्ययन करवाया गया था। वे 12 वर्ष की आयु से ही ब्रज भाषा में रचनाऐं करते रहे हैं। वर्ष 1914 में उन्होंने भारत भारतीय का प्रकाशन किया। उन्होंने अपनी प्रेस की स्थापना की। उन्होंने पुस्तकों का प्रकाशन किया। जिसमें साकेत व पंचवटी ग्रंथ शामिल हैं। महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहा। वर्ष 1953 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण अलंकरण प्रदान किया। इसके बाद 1954 में उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण अलंकरण मिला। वर्ष 1962 में हिंदू विश्वविद्यालय ने डीलिट की उपाधि प्रदान की। उन्होंने चंद्रहास, तिलोत्तमा, अनघ आदि नाटकों की रचना भी की। भारतीय साहित्य में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। मध्यप्रदेश सरकार प्रतिवर्ष 3 अगस्त को कवि दिवस मनाती है। मैथलीशरण गुप्त का निधन 12 दिसंबर 1954 में हो गया।