मालिक: असर

मालिक...

बस मुझे और मत घुमा मालिक,,.. अब कोई रास्ता बता मालिक..!!

मेरी आँखों मे ख़्वाब ले आया,,.. मुझको ताबीर भी बता मालिक..!!

कौन है तू ये भेद मैं खोलूँ,,.. कौन हूँ मैं ये तू बता मालिक..!!

मुझको इस दश्त का मकीं करके,,.. तू कहाँ दूर जा बसा मालिक..!!

अब मिरी ज़ात में अंधेरा है,,.. और है आख़िरी दिया मालिक..!!

मैंने मालिक से दोस्ती करली,,.. और मैं ख़ुद भी हो गया मालिक..!!

इस जहान-ए-ख़राब में क्या है,,.. एक बंदा है दूसरा मालिक..!!

मैं भी कुन कह रहा था तेरी तर्ह,,.. शेर तो बाद में कहा मालिक..!!

हम तिरी ख़ल्क़ के मुशाहिद हैं,,.. तू हमारा मुशाहिदा मालिक..!!

मैं मुझे ढूंढ़ने लगा इक रोज़,,.. और मिरे हाथ आ लगा मालिक..!!

-निवेश साहू 'असर'​

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