गणेश और कार्तिकेय के कारण हुई थी महादेव के दूसरे ज्योतिर्लिंग की स्थापना, जानिए क्या है कथा?

भारत देश धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है, तथा यहां कई तरह के धर्म वास् करते है। वही यदि हम बात करें हिन्दू धर्म की तो हिन्दू धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है, हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों और परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं। और देश में कई ऐसे मंदिर है जिनके पीछे बहुत रोमांचक इतिहास है। बात यदि हम करें महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों की तो महादेव के इन 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है। कहा जाता है कि इन 12 स्थानों पर शिवलिंग मौजूद हैं उनमें ज्योति के रूप में स्वयं महादेव विराजमान हैं। और ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र कर लेता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं। वहीं, आज हम आपको दूसरे ज्योतिर्लिंग अर्थात, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में बताएंगे। यह ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश में स्थित हैं।

मल्लिकार्जुन का अर्थ:- महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग में प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के नाम का अपना एक अलग महत्व और अर्थ है, तथा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की भी अपनी एक महिमा है, यहां मल्लिका से तात्पर्य पार्वती तथा अर्जुन से महादेव के लिए इस्तेमाल किया गया है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में भोलेनाथ तथा माता पार्वती दोनों की ज्योतियां समाई हुई हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (आंध्र प्रदेश) की कथा:-  मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दूसरे ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश में स्थित हैं। मान्यता है कि यहां महादेव मां पार्वती के साथ विराजते हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा शिव जी के परिवार से जुड़ी हुई है। महादेव के छोटे पुत्र गणेश जी, कार्तिकेय से पहले विवाह करने चाहते थे। जब यह बात महादेव और माता पार्वती को पता चली तो उन्होंने इस परेशानी को सुलझाने के बारे में विचार किया। उन्होंने दोनों के समक्ष एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि दोनों में से जो कोई भी पृथ्वी की पूरी परिक्रमा कर पहले लौटेगा उनकी शादी पहले कराई जाएगी। जैसे ही कार्तिकेय ने यह बात सुनी वे पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े। किन्तु गणेश जी टस से मस नहीं हुए। वे  बुद्धि के तेज थे तो उन्होंने अपने माता-पिता अर्थात माता पार्वती और महादेव को ही पृथ्वी के समान बताकर उनकी परिक्रमा कर ली। इस बात से खुश होकर एवं गणेश की चतुर बुद्धि को देखकर माता पार्वती तथा महादेव ने उनका विवाह करा दिया। जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस आए तो उन्होंने देखा की गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों के साथ हो चुका था जिनका नाम रिद्धि तथा सिद्धि था। इनसे गणेश जी को शुभ और लाभ दो पुत्र भी प्राप्त हुए थे। कार्तिकेय को देवर्षि नारद ने सारी बात बताई। इस बात से कार्तिकेय नाराज हो गए तथा माता-पिता के चरण छुकर वहां से चले गए। कार्तिकेय क्रौंच पर्वत पर जाकर रहने लगे। उन्हें मनाने के लिए शिव-पार्वती ने नारद जी को वहां भेजा किन्तु कार्तिकेय नहीं माने। फिर पुत्रमोह में माता पार्वती भी उनके पास उन्हें लेने गईं तो उन्हें देखकर कार्तिकेय चले गए। इस बात से दुखी होकर माता पार्वती वहीं बैठ गईं। वहीं, महादेव भी ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए। इसके पश्चात् से ही इस जगह को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा। 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा:- कहा जाता है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जो भी भक्त जाता है वो निराश होकर नहीं लौटता है, तथा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन और सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है, उसे सभी तरह की मुसीबतों से छुटकारा मिल जाता है तथा अन्नत सुखों की प्राप्ति होती है। और कहा जाता है शिव जी अत्यंत ही भोले होते है, तभी उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है, तथा वे एकमात्र ऐसे देवता है जो बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है, सच्चे दिल से जो भी उनकी उपासना करता है वे उस पर प्रसन्न हो जाते है।  

आखिर क्यों चंद्रदेव ने की थी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना?

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