पश्चिम बंगाल में स्थित है मंगल चंडिका शक्तिपीठ, जानिए इसके बारे में

नवरात्रि का पर्व चल रहा है और इस पर्व के दौरान माता रानी के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। माता रानी अपने नौ रूपों को 9 दिनों में दिखाती हैं, हालाँकि माता के 52 शक्तिपीठ है। जी हाँ और इसी में शामिल है मंगल चंडिका शक्तिपीठ। मंगल चंडिका शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल राज्य के बर्दमान जिले में गुस्कारा के उज्जनि गांव में है। जी हाँ और गुस्कारा रेलवे स्टेशन यहां से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थल पर माता की दायीं कलाई गिरी थी। जी हाँ और पुराणों के अनुसार जहाँ देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वहाँ उनके शक्तिपीठ बन गये।

इस शक्तिपीठ के दर्शन से मिल जाता है CM से लेकर PM तक का पद

कहा जाता है ये शक्तिपीठ पावन तीर्थ कहलाये, जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालाँकि 52 शक्तिपीठ माने जाते हैं। आपको पता हो मंगल चंडिका शक्तिपीठ में माता सती की “दायीं कलाई” गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘मंगल चंडिका’ और शिव भगवान को ‘कपिलांबर’ कहा जाता है।

नवरात्रि: यहाँ गिरी थी माता रानी की बायीं एड़ी, कहलाया कपालिनी शक्तिपीठ

कथा - प्राचीन कथा के अनुसार शिव भगवान के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने शिव भगवान और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा, क्योंकि राजा दक्ष शिव भगवान को अपने बराबर का नहीं मानते थे। यह बात माता सती को सही नहीं लगी। वह बिना बुलाए ही यज्ञ में शामिल होने चली गयीं। यज्ञ स्‍थल पर शिव भगवान का अपमान किया गया, जिसे माता सती सहन नहीं कर पायीं और वहीं हवन कुण्ड में कूद गयीं। शिव भगवान को जब ये बात पता चली, तो वे वहाँ पर पहुँच गए और माता सती के शरीर को हवनकुण्ड से निकालकर तांडव करने लगे, जिसके कारण सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उथल-पुथल मच गई। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बाँट दिया, जो अंग जहाँ पर गिरे, वे शक्ति पीठ बन गए।

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