ब्रम्हाण्ड में मंगल ग्रह और हिन्दू धर्म में मंगल देव जिन्हें भूमि, संपत्ति, विवाह, संतान आदि सभी सुखों का प्रदाता माना जाता है। वे श्रद्धालुओं का भला भी करते हैं, ये उग्र ग्रह हैं और इनका वर्ण लाल माना जाता है। जिसके कारण मंगल देव को लाल पुष्प, कुमकुम और अन्य रक्त वर्णि तत्व चढ़ाए जाते हैं। भगवान श्री मंगलनाथ के तौर पर मंगल ग्रह का पूजन होता है। मंगल को भौम भी कहा जाता है। इन्हें अंगारक भी कहा जाता है। भगवान मंगल जन्मकुंडली में अलग - अलग फल देते हैं। विवाह संबंध आदि मंगल दोष के प्रभाव से ही तय होते हैं। जन्मकुंडली में यदि मांगलिक दोष होता है तो व्यक्ति को विवाह संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में विवाह संबंध तय नहीं हो पाता, विवाह संबंध तय होकर छूट जाता है, विवाह के समय विघ्न आता है, विवाह के बाद जीवन साथी से विवाद भी हो जाता है। पहले भाव में यदि मंगल हो और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो या शत्रु राशि में हो तो मंगल दोष होता है। इस तरह की स्थिति से जातक का विवाह अधिक आयु में होता है। 4 के भाव में मंगल होने पर जातक का विवाह जल्द होता है लेकिन वैवाहिक जीवन में सुख होने की संभावना कम हो जाती है। कई बार उलझन सामने आती है। मंगल वाले जातक को ज्योतिष की सलाह से मंगल के प्रभाव से युक्त वर या वधू से ही विवाह करना उपयुक्त माना जाता है। हिन्दू धर्म के ये दो ग्रन्थ जिनके बारे में जानकर आप भी हो जायेंगे हैरान किस्मत को चमका सकते है काले घोड़े की नाल के ये उपाय दुःख के समय इसलिए होता है और दुःख का ऐहसास शिरडी के बारे में जानें क्या थे साई बाबा के विचार