मंत्र उच्चारण कर देते हैं भगवान को पुष्पांजलि, जानें खास विधि

मंत्र के जाप सभी के लिए बहुत जरुरी होते हैं क्योंकि मंत्र जाप करने से बहुत से लाभ होते हैं. ऐसे में हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों की मानें तो मंत्र एकमात्र ऐसी शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को सही राह दिखा सकती है. ऐसे में सभी धार्मिक कार्यों आदि से पहले आवाहित देव शक्तियों को मंत्र पुष्पांजलि अर्पित की जाती है इसी के साथ ही हर तरह के अनुष्ठान को पूर्ण करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं असल में इसका यानि मंत्र पुष्पांजलि का वास्तविक भावार्थ क्या है.

जी हाँ, अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं मंत्र पुष्पांजली से जुड़ी खास बातें. वहीं वेद शास्त्रों में देवी-देवताओं को मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए अनेक मंत्र दिए गए हैं, लेकिन प्रचलन में कुल चार ही प्रमुख मंत्र है और मंत्र पुष्पांजलि में राष्ट्रीय एकात्म जीवन की आकांक्षा छिपी होने के कारण इसे एक राष्ट्रगीत और विश्वप्रार्थना के रूप में जाना जाता है. ऐसे में संपूर्ण विश्व के कल्याण की, आकांक्षा और सामर्थ्य की सबको पहचान करवाने वाली यह विश्व प्रार्थना है जो हम आपको बताने जा रहे हैं.

 

पहला मंत्र- ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन्. ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:..

भावार्थ- देवों ने यज्ञ के द्वारा यज्ञरूप प्रजापति का पूजन किया. यज्ञ और तत्सम उपासना के वे प्रारंभिक धर्मविधि थे. जहां पहले देवता निवास करते थे (स्वर्गलोक में) वह स्थान यज्ञाचरण द्वारा प्राप्त करके साधक महानता (गौरव) प्राप्त करते हैं.

दूसरा मंत्र- ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने. नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे. स मस कामान् काम कामाय मह्यं. कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय. महाराजाय नम:.

भावार्थ- हमारे लिए सब कुछ अनुकूल करने वाले राजाधिराज वैश्रवण कुबेर को हम वंदन करते हैं. वो कामनेश्वर कुबेर मुझ कामनार्थी की सारी कामनाओं को पूरा करें.

तीसरा मंत्र- ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं. समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात्. पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकरा‌ळ इति..

भावार्थ- हमारा राज्य सर्व कल्याणकारी राज्य हो. हमारा राज्य सर्व उपभोग्य वस्तुओं से परिपूर्ण हो. यहां लोकराज्य हो. हमारा राज्य आसक्तिरहित, लोभरहित हो. ऐसे परमश्रेष्ठ महाराज्य पर हमारी अधिसत्ता हो. हमारा राज्य क्षितिज की सीमा तक सुरक्षित रहें. समुद्र तक फैली पृथ्वी पर हमारा दीर्घायु अखंड राज्य हो. हमारा राज्य सृष्टि के अंत तक सुरक्षित रहें.

चौथा मंत्र- 

ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो. मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे. आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति..

भावार्थ- राज्य के लिए और राज्य की कीर्ति गाने के लिए यह श्लोक गाया गया है. अविक्षित के पुत्र मरुती, जो राज्यसभा के सर्व सभासद है ऐसे मरुतगणों द्वारा परिवेष्टित किया गया यह राज्य हमें प्राप्त हो यहीं कामना.

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