23 मार्च 1931 शाम करीब साढ़े सात बजे जालिम ब्रिटिश सरकार ने शहीदे आजम भगत सिंह के साथ उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरू को भी फांसी दी थी. भगत सिंह ये वो नाम है जिसे कोई भी हिंदुस्तानी लेने से पहले इसके आगे शहीद जरूर लगाता है, मगर वतन के वास्ते सिर्फ 23 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूमने वाले इस अमर शहीद को आज तक सरकार शायद शहीद नहीं मानती क्योकि इससे उसका कोई खास फायदा नहीं है और हिंदुस्तान की सरकार सिर्फ फायदे का सौदा करना जानती है. शहीदे आजम भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू कहते हैं कि फांसी 24 मार्च 1931 की सुबह दी जानी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार डर गई क्‍योंकि लोग एकत्र होने शुरू हो गए थे. संधू कहते हैं कि भगत सिंह ने सिर्फ 23 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान दे दी. अब आजादी मिलने के बाद उन्‍हें शहीद घोषित करने से भी सरकारें परहेज कर रही हैं. 70 साल की आजादी के बाद भी शहीदे आजम भगत सिंह के नाम के आगे 'क्रांतिकारी आतंकी' लिखा जा रहा है. अगस्‍त 2013 में मनमोहन सरकार ने राज्‍यसभा में भगत सिंह को शहीद माना था, बावजूद इसके अब तक रिकॉर्ड में सुधार नहीं हुआ. इस बारे में वर्तमान गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने थोड़ी दिलचस्पी जरूर ली थी लेकिन अब तक इन वीर सपूतों को दस्तावेजों में शहीद नहीं घोषित करा पाए. आज देश भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है, लेकिन शायद लोगों को यह पता नहीं है कि हमारी सरकारों ने उन्‍हें दस्‍तावेजों में अब तक शहीद नहीं घोषित किया है. आखिर भगत सिंह को ‘शहीद’ घोषित करने में सरकार को परेशानी क्‍या है?. क्‍या सरकार को कोई डर है? शहीद भगत सिंह ब्रिगेट के प्रमुख एवं भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू कहते हैं "आजादी के बाद सभी सरकारों ने सिर्फ नरम दल वालों को सम्‍मान दिया, जबकि गरम दल वाले क्रांतिकारी हाशिए पर रहे." संधू के मुताबिक "वह इस मामले को लेकर भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से मिल चुके हैं. दिल्ली यूनिविर्सटी में पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाई जा रही ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ नामक पुस्तक में शहीद भगत सिंह को जगह-जगह क्रांतिकारी आतंकवादी कहा गया था. यदि वे दस्‍तावेजों में शहीद घोषित होते तो ऐसा लिखने की हिम्‍मत किसी की न होती." खेर कोई बात नहीं अगर सरकार शहीदे आजम भगत सिंह को कागजी तौर पर शहीद न भी लिखे तो क्या उनका रुतबा कम हो जायेगा. क्योकि सत्य को किसी तरह के सबूत की जरुरत नहीं होती. दरअसल शहीदे आजम भगत सिंह ने भी कभी ये चाह नहीं की होगी की उन्हें इस तरह का कोई सम्मान मिले वो तो बस वतन परस्ती की राह पर चल पड़े थे, उन्हें इन सब चीजों से मतलब ही कहा था. लेकिन शहीदे आजम भगत सिंह ने ही कहा था -''बहरों को जगाने के लिए धमाके की जरुरत होती है.'' शहीद दिवस: देशभक्ति का दूसरा नाम 'भगत सिंह' मोदी का सम्मान न करने पर दी अजीब सजा