नईदिल्ली। केंद्र सरकार दवाईयों के मूल्य निर्धारण के मौजूदा तरीके को समाप्त कर एक नई पद्धति विकसित करेगी। इसमें वह दवा उद्योग के कारोबारियों व अन्य लोगों के साथ चर्चा करेगी। माना जा रहा है कि, इससे गरीबों व जरूरतमंद लोगों को लाभ होगा। नरेंद्र मोदी सरकार दवा मूल्य नियंत्रण आदेश 2013 की समीक्षा करने में लगी है। सरकार चाहती है कि, नई दवा को बाजार में लाने में देर न हो और इसका मूल्य निर्धारण सही तरह से हो सके। इसकेलिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय अन्य संबंधित मंत्रालयों से चर्चारत है। सरकार की मंशा है कि, गरीबों को और जरूरतमंद लोगों को समय पर दवाई मिल सके और दवाईयों की कीमत इतनी हो कि वे इसका मूल्य भी चुका सकें। इस मामले में दवा उद्योग और दूसरे हितकारियों के साथ चर्चा की जा रही है। गौरतलब है कि डीपीसीओ के प्रावधानों के तहत केवल उन दवाओं की कीमतें तय हैं,जो आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल हैं,इन दवाओं की संख्या बाजार में उपलब्ध छह हजार दवाओं में से लगभग 850 है। मूल्य आधार पर इनकी संख्या कुल दवा बाजार का लगभग 17 प्रतिशत है। एक विशेषज्ञ समिति आवश्यक दवाओं की सूची का लगातार आकलन करती है। सरकार जिन बातों पर चर्चा कर रही है, उनमें आवश्यक दवाइयों की राष्ट्रीय सूची के संशोधन के आधार पर सूची में जोड़.घटाव को शामिल करते हुए अनुसूचित दवाओं की सूची संशोधित करना, ताकि केवल आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल नई दवाओं के मूल्य एमपीपीए द्वारा निर्धारित करने की मांग, अधिकतम मूल्य से भी ज्यादा में बेची जाने वाली दवाओं को सीमित करने की बात आदि शामिल है। होम्योपैथिक डॉक्टर, अब नहीं बेच सकेंगे दवाइयां दवाइयाँ भी बन सकती है वजन के बढ़ने का कारण अमेरिका के तीन वैज्ञानिकों को मिला चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार रजिस्ट्रार सह सचिव के पद पर निकली भर्ती, शीघ्र करे आवेदन