मासिक धर्म एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है जिससे महिलाएं हर महीने गुजरती हैं, लेकिन हमारे समाज में इसे अक्सर कलंकित और उपेक्षित माना जाता है। महिलाओं को अपने मासिक धर्म के दौरान कई तरह की शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें ऐंठन, थकान और चक्कर आना शामिल है। इसके बावजूद, कई कंपनियाँ मासिक धर्म की छुट्टी देने में विफल रहती हैं, जिससे महिलाओं को अपनी पीड़ा के साथ काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) ने हाल ही में महिलाओं के लिए अनिवार्य मासिक धर्म अवकाश की आवश्यकता पर जोर दिया है। यह कदम जापान, चीन, इंडोनेशिया और जाम्बिया जैसे देशों से प्रेरित है, जहाँ मासिक धर्म अवकाश पहले से ही कार्य संस्कृति का हिस्सा है। स्पेन में, महिलाओं को हर महीने तीन दिन की मासिक धर्म छुट्टी मिलती है। भारत में, कुछ राज्यों ने मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ लागू की हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। बिहार 1992 से महिलाओं को दो दिन का भुगतान किया गया मासिक धर्म अवकाश प्रदान कर रहा है, जबकि केरल ने हाल ही में छात्रों के लिए इसी तरह की नीति की घोषणा की है। केरल सरकार का यह कदम मासिक धर्म स्वास्थ्य और कल्याण के महत्व को पहचानने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कंपनियों को मासिक धर्म अवकाश के महत्व को स्वीकार करना चाहिए और अपनी महिला कर्मचारियों को इसे प्रदान करना चाहिए। इससे न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार होगा, बल्कि एक अधिक सहायक कार्य वातावरण भी बनेगा। मासिक धर्म अवकाश प्रदान करके, कंपनियाँ अपने कर्मचारियों की भलाई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर सकती हैं और एक सकारात्मक कार्य संस्कृति बना सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर नीति बनाने का भी आग्रह किया है। कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह नीति-निर्माण का मामला है, न कि कोई कानूनी मुद्दा। इस नीति का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं को उनके मासिक धर्म के दौरान ज़रूरी आराम और देखभाल मिले। यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है कि सभी कंपनियां इस नीति को लागू करें, ताकि महिलाएं अपने हक का लाभ उठा सकें। मासिक धर्म अवकाश एक विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि एक बुनियादी अधिकार है जिसकी महिलाएं हकदार हैं। इस अधिकार को पहचानकर, हम एक अधिक समावेशी और सहायक समाज बना सकते हैं जहाँ महिलाएँ भेदभाव या कलंक के डर के बिना आगे बढ़ सकती हैं। Kalki 2898 AD ने मचाया बॉक्स ऑफिस पर धमाल, 11 दिन में कर डाली इतनी कमाई रोबोट काम करते-करते थक गया और सीढ़ियों से कूदकर आत्महत्या कर ली। क्या यह संभव है? शालिनी पांडे : इंजीनियर से अभिनेत्री तक, जुनून और दृढ़ संकल्प का सफर