मिसाल इसकी कहाँ है -जावेद अख़्तर

मिसाल इसकी कहाँ है...

वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे  अजीब बात हुई है उसे भुलाने में 

जो मुंतज़िर[1] न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा  कि हमने देर लगा दी पलट के आने में 

लतीफ़[2] था वो तख़य्युल[3] से, ख़्वाब से नाज़ुक  गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में 

समझ लिया था कभी एक सराब[4] को दरिया  पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में 

झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा  ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में

 -जावेद अख़्तर

1.  इंतज़ार में 2.  मज़ेदार 3.  सोच 4.  मरीचिका

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