शुक्रयान को मोदी सरकार ने दी मंजूरी, इतने करोड़ में चमकीले ग्रह तक पहुंचेगा भारत

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्र ग्रह पर केंद्रित एक नया मिशन "वीनस ऑर्बिटर मिशन" (VOM) और चंद्रयान 4 मिशन को मंजूरी दे दी है, जो भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है। यह मिशन न केवल भारत के चंद्रमा और मंगल तक सीमित अंतरिक्ष अभियानों से आगे बढ़ने की दिशा में एक नया कदम है, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान में भी एक मील का पत्थर साबित होगा।

वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM)

वीनस ऑर्बिटर मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह की सतह, उपसतह और वायुमंडलीय प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है, ताकि यह समझा जा सके कि पृथ्वी के समान परिस्थितियों में बनने वाला शुक्र ग्रह किस तरह से बिल्कुल अलग वातावरण विकसित कर सका। इस मिशन से शुक्र ग्रह के वातावरण पर सूर्य के प्रभावों और उसके बदलावों का भी अध्ययन किया जाएगा। मिशन के लिए कुल ₹1,236 करोड़ की निधि स्वीकृत की गई है, जिसमें से ₹824 करोड़ अंतरिक्ष यान के विकास और संबंधित तकनीक पर खर्च किए जाएंगे।

इस परियोजना का प्रक्षेपण 2028 में होने की उम्मीद है और इससे भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में रोजगार और नई प्रौद्योगिकियों के विकास की संभावनाएं भी खुलेंगी। मिशन में शैक्षणिक संस्थानों और छात्रों की भागीदारी के साथ-साथ भारतीय उद्योग की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

चंद्रयान 4 मिशन:-

चंद्रयान 4 मिशन का उद्देश्य चंद्रमा से नमूने एकत्र कर उन्हें पृथ्वी पर लाना और उन पर वैज्ञानिक अध्ययन करना है। यह मिशन भारत की चंद्र अन्वेषण क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में देखा जा रहा है। चंद्रयान 4 के लिए ₹2,104 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है, और इसे 36 महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इस मिशन में चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग, नमूने एकत्र करना, और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की तकनीक का प्रदर्शन किया जाएगा।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसरो द्वारा भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए तैयारियों की जानकारी दी और बताया कि चंद्रयान 4 के साथ-साथ भारत एक मानवयुक्त चंद्र मिशन की भी योजना बना रहा है। इसके अलावा, भारत 2035 तक एक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और 2040 तक चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने की दिशा में भी काम कर रहा है। इन अभियानों से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को विश्वस्तरीय पहचान मिलेगी और इससे देश की वैज्ञानिक प्रगति को और बल मिलेगा।

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