नई दिल्ली: 5 जुलाई को अपना प्रथम बजट पेश करने जा रहीं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समक्ष कमाई और खर्च में तालमेल बिठाने की बड़ी चुनौती है. आम नागरिक हो या सरकार, कमाई और खर्च को मैनेज करना हमेशा से बड़ी चुनौती रही है. कोई भी गड़बड़ी केंद्र और प्रदेशों सरकारों को कर्ज के जाल में जकड़ सकती है. रेटिंग एजेंसियों के अनुसार, अपने खर्च को मैनेज करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने अपनी कमाई का 300% से अधिक कर्ज ले रखा है. डॉ सुनील कुमार, मुख्य अर्थशास्त्री, इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च का कहना है कि "वित्त वर्ष 2018-19 में भारत के सरकारी बजट (केंद्र और राज्य) का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.9 प्रतिशत था, जो फिंच रेटिंग वाले ‘बीबीबी’ के ग्रुप औसत 1.9% से कहीं अधिक है.’ कर्ज, राजकोषीय घाटे से सीधे तौर से जुड़ा है, कई और दूसरे तरह के कर्ज इस घाटे को पूरा करते हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री के तौर पर निर्मला सीतारमण अपने पहले बजट में इस राजकोषीय घाटे को मैनेज करने का प्रयास कर सकती हैं. वित्त वर्ष 19 में देश का कर्ज जीडीपी का 69 फीसद था. जबकि 2018 में ये 68.2 और 2017 में 67.5 फीसदी था. डाटा के अनुसार 2013 से 2017 तक सरकार का कर्ज उसकी आमदनी के अनुपात में 341 फीसदी था, किन्तु 2018 में इसमें मामूली गिरावट देखी है और ये 329.1 प्रतिशत रह गया. ये गिरावट इसलिए आई है, क्योंकि महंगाई पर थोड़ा बहुत नियंत्रण पाया गया. महंगाई में गिरावट के कारण 2019 में लिए जाने वाले नए कर्ज की दर के भी कम होने की संभावना जताई जा रही है. बजट 2019: आज सदन में पेश किया जाएगा आर्थिक सर्वे, जानिए क्या है बजट से संबंध सवर्ण आरक्षण से कॉलेजों में बढ़ेंगी सीटें, लेकिन क्या बजट बढ़ाएगी सरकार ? मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट, क्या इन चुनौतियों से निपट पाएंगी वित्त मंत्री ?